फ्यूचर लाइन टाईम्स
बहिन रीता माथुर के 22 दिसम्बर के इस प्रश्न का उत्तर मैंने आंशिक रूप में दिया था, शेष भाग प्रस्तुत है :
वेद में समग्र ज्ञान है। इसमें सांसारिक एवं भौतिक ज्ञान भी है जिसे अपरा विद्या (Worldly Knowledge) कहते हैं। वेद में आथ्यात्मिक ज्ञान : ईश्वर, जीव, प्रकृति, कर्मबन्धन, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि विषयों का भी ज्ञान है जिसे परा विद्या ( Other Wordly Knowledge) कहते हैं।
ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक तथा उपनिषदों में केवल वेद की अध्यात्म विद्या की व्याख्या है।
छह दर्शन शास्त्र हैं: न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा,वेदान्त। ये सभी
वेद ज्ञान की दार्शनिक रूप में (Philosophically) व्याख्या करते हैं। सभी का अपना अपना विषय है।
न्याय दर्शन का विषय है तर्क (Logic)। तत्त्व / सत्य /Reality को कैसे जाना जा सकता है।
वैशेषिक दर्शन का विषय है जड़ सृष्टि की रचना। परमाणु (Atom) से सृष्टि की रचना किस प्रकार हुई।
सांख्य दर्शन का विषय है : चेतन सृष्टि की रचना --- प्रकृति - पुरुष संयोग। अचेतन प्रकृति और चेतन पुरुष/आत्मा/जीव के संयोग/मेल/ Union से समस्त प्राणी जगत् की सृष्टि हुई है। प्रकृति जगत् का उपादान कारण (Material Cause) है। ईश्वर जगत् का निमित्त कारण (Efficient) Cause) है।
योग दर्शन का विषय है आत्मा/जीव/Soul का प्रकृति से वियोग (Separation) और परमात्मा से संयोग (Union). इसे कैवल्य/मोक्ष कहते हैं
मीमांसा दर्शन का उद्घोषित विषय है : धर्म। कर्म जीव का धर्म है। बिना कर्म के जीव रह नहीं सकता। इसलिए वस्तूत: मीमांसा का विषय कर्म है। इस में मनुष्य के लिये वेद विहित कर्मों का वर्णन है जो कि वेद के मंत्रों की व्याख्या से सुझाए गए हैं।
वेदान्त दर्शन
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