फ्यूचर लाइन टाईम्स
वसई : जहॉ पर हमारी भारत सरकार व स्वास्थ्य मंत्रालय स्वास्थ्य को लेकर बड़े बड़े दावे कर रही है कभी गरीबो के मुफ्त इलाज की बात की जाती है तो कभी मुफ्त इलाज गरीबो का हक बताकर चुनाव में वोट मांगे जाते हैं आज भी वसई की जनता को सही इलाज नही मिल पाने के कारण उन्हें मुम्बई इलाज के लिए जाना पड़ता है
दवाखाने के नाम पर वसई में पारनाका पर मशहुर सर. डी. एम. पेटीट रूग्णालय है जहॉ पर मरीज व उनके परिजन ऐ उम्मीद के साथ जाते है कि यहॉ पर मुफ्त इलाज होता है मरीज लाईन में लगकर अपने नम्बर इंतेजार करते है जब नंम्बर आता है अभी तक मरीज अपने मर्ज की तकलीफ से परेशान था अब डॉक्टर साहब के तेवर को झेलना है जब डॉक्टर मरीज चेक करके दवाईयॉ लिखते हैं तो आधी से ज्यादा दवाईयां बाहर से लेकर आना पड़ता और जब अगर मरीज चर्मरोग बालरोग या गुप्तरोगी है तो उसको उस दिन का इंतजार करना पड़ेगा जिसदिन उस रोग के डॉक्टर साहब आते है और उसमें भी डॉक्टर साहब लिमिटेड संख्या जो उनकी होती है बीस मरीज या तीस मरीज को देखना है बस उतने ही मरीज को देखना है अब अगर मरीज को नम्बर मिल गया तो ठीक है नही तो मरीज फिर अगले हफ्ते का इंतजार करे मर्ज बढे या घटे इसको लेकर मरीजो को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है कभी चेकप के नामपर ब्लड जॉच बाहर से लिख दी जाती है तो कभी X रे बाहर लिख दिया जाता है ये कह कर की यहॉ कि मशीन खराब हो गई X रे मशीन महीनो महीनो खराब पड़ी रहती है और हॉस्पीटल प्रशासन को कुछ पड़ी नही है आखिर जिस मरीज़ को X रे की जॉच की जरूरत होती हो तो डॉक्टर क्या करते होगें या तो बगैर जॉच का इलाज़ या बाहर की जांच आखिर गरीब व्यक्ति कहा से पैसे लाकर बाहर से जांच करवायेगा वो तो उम्मीद लेकर आया था कि मुफ्त में इलाज होता है लेकिन दवाइयां बाहर की जांच बाहर की अच्छा अगर दवाईया अपने पास से देते हैं तो खांशी के सीरप के लिए मरीज़ को घर से बोतल लेकर आना पड़े गा क्योकि हॉस्पीटल प्रशासन के पास बोतल का इंतेजाम नही है कुछ मरीज़ के बोतल का इंतेजाम न होने के कारण बगैर सीरप लिए जाना पड़ता है ये सब आसुविधाऐ क्यूँ आखिर इसका जिम्मेदार कौन है क्या यहॉ कि जनता को इलाज जैसी सुविधाएं मिलने का हक नही है
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