फ्यूचर लाइन टाईम्स
शंका -कक्षा 6-पुस्तक -प्राचीन भारत
लेखिका- रोमिला_थापर
समाधान : ऋग्वेद के मंत्र 10 /68 /3 में अतिथिनीर्गा: का अर्थ अतिथियों के लिए गौए किया गया हैं जिसका तात्पर्य यह प्रतीत होता है कि किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के आने पर गौ को मारकर उसके मांस से उसे तृप्त किया जाता था।यहाँ पर जो भ्रम हुआ है उसका मुख्य कारण अतिथिनी शब्द को समझने कि गलती के कारण हुआ है। यहाँ पर उचित अर्थ बनता है ऐसी गौएं जो अतिथियों के पास दानार्थ लाई जायें, उन्हें दान कि जायें। Monier Williams ने भी अपनी संस्कृत इंग्लिश शब्दकोश में अतिथिग्व का अर्थ "To whom guests should go " (P.14) अर्थात जिसके पास अतिथि प्रेम वश जायें ऐसा किया है। श्री Bloomfield ने भी इसका अर्थ "Presenting cows to guests" अर्थात अतिथियों को गौएं भेंट करनेवाला ही किया है। अतिथि को गौ मांस परोसना कपोलकल्पित है।इस भ्रान्ति का कारण मैकडोनाल्ड (वैदिक माइथोलॉजी पृष्ठ 145 ) एवं कीथ (दी रिलिजन एंड दी फिलोसोफी ऑफ़ दी वेदास एंड उपनिषदस ) द्वारा अतिथिग्व शब्द का अर्थ अतिथियों के लिए गोवध करना बताया जाना हैं जिसका समर्थन काणे (हिस्ट्री ऑफ़ धर्म शास्त्र भाग 2 पृष्ठ 749-56 ) ने भी किया है।
यह भी एक भ्रान्ति है कि वेदों में बैल को खाने का आदेश है। वेदों में जैसे गौ के लिए अघन्या अर्थात न मारने योग्य शब्द का प्रयोग है उसी प्रकार से बैल के लिए अघ्न्य शब्द का प्रयोग है। यजुर्वेद 12/73 में अघन्या शब्द का प्रयोग बैल के लिए हुआ है। इसकी पुष्टि सायणाचार्य ने काण्वसंहिता में भी कि है।
इसी प्रकार से अथर्ववेद 9/4/17 में लिखा है कि बैल सींगों से अपनी रक्षा स्वयं करता है, परन्तु मानव समाज को भी उसकी रक्षा में भाग लेना चाहिए।
अथर्ववेद 9/4/19 मंत्र में बैल के लिए अधन्य और गौ के लिए अधन्या शब्दों का वर्णन मिलता है। यहाँ पर लिखा है कि ब्राह्मणों को ऋषभ (बैल) का दान करके यह दाता अपने को स्वार्थ त्याग द्वारा श्रेष्ठ बनाता है। वह अपनी गोशाला में बैलों और गौओं कि पुष्टि देखता है।
अथर्ववेद 9/4/20 मंत्र में जो सत्पात्र में वृषभ (बैल) का दान करता है उसकी गौएं संतान आदि उत्तम रहती है।
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