फ्यूचर लाइन टाईम्स
यथापकृष्टं शैवालं क्षणमात्रं न तिष्ठति ।
आवृणोति तथा माया प्राज्ञं वापि पराङ्मुखम् ॥ ३२५ ॥
जिसप्रकार शैवाल को जल पर से एक बार हटा देने पर वह क्षणभर भी अलग नहीं रहता, [तुरंत ही फिर उसको ढक लेता है] उसी प्रकार आत्म-विचार-विहीन विद्वान् को भी माया फिर घेर लेती है
“विवेक चूडामणि” पुस्तकसे
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