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समाज में शिक्षक के प्रति बदलता दृष्टिकोण  

फ्यूचर लाइन टाईम्स


नो डिटेंशन पॉलिसी शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 का अहम हिस्सा है| शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 जो 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की बात करता है|



प्राचीन काल में समाज में शिक्षक का कार्य केवल शिक्षण कार्य था |जिसको वह पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया करते था |शिक्षक से शिक्षण कार्य के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं लिया जाता था जिसके कारण शिक्षक भी अपने शिक्षण के कार्य में पूर्ण दक्ष होते था | इस गुण के कारण समाज में शिक्षक को ईश्वर के तुल्य माना जाता था |प्राचीन काल में शिक्षक की आर्थिक स्थिति तो विशेष नहीं होती थी |परंतु समाज में शिक्षक का मान सम्मान के दृष्टिकोण से काफी मजबूत स्थिति होती थी| वर्तमान स्थिति में शिक्षक की आर्थिक स्थिति तो मजबूत हुई है लेकिन मान सम्मान की दृष्टि से स्थिति काफी कमजोर प्रतीत होती है |क्या वर्तमान समय में हम शिक्षक को इतना सम्मान देते हैं, जितना किसी राजनेता, उद्योगपति, अभिनेता, इंजीनियर, डॉक्टर, पत्रकार, आईपीएस अधिकारी को देते हैं? इसका क्या कारण है?मेरे दृष्टिकोण से समाज में शिक्षक के  प्रति बदलती लोगों की धारणा के निम्न बिंदु हो सकते हैं -
1 शिक्षक का फिल्मों में हास्यस्पद चरित्र:- बॉलीवुड की फिल्म थ्री इडियट और मुन्ना भाई एमबीबीएस में प्रिंसिपल को एक नकारात्मक चरित्र के रूप में पेश किया गया है |इससे समाज में शिक्षक के प्रति लोगों की धारणा एक कठोर, निर्दयी शिक्षक की बनी है |किसी शिक्षक, प्रिंसिपल या कुलपति को अच्छे चरित्र के रूप में दिखाने वाली फिल्में अब नहीं बन रही हैं| कहीं यह भारतीय समाज में शिक्षकों के प्रति कम हो रहे सम्मान का एक उदाहरण तो नहीं ? 
2 कुकुरमुत्ता की तरह पनपती ट्यूशन दुकानें:- आपने आमतौर पर छात्रों से सुना होगा कि कक्षा में तो अमुक शिक्षक ईमानदारी के साथ शिक्षण कार्य नहीं करता है परंतु विद्यालय के बाहर जो ट्यूशन दुकान सजा रखी है उसमें पूर्ण इमानदारी एवं तल्लीनता के साथ शिक्षण कार्य कराते हैं ऐसी स्थिति में समाज के लोगों से शिक्षक के प्रति क्या अपेक्षा कर सकते हैं?  आए दिन आप समाचार पत्रों में पत्रिकाओं में समाचारों में या फिर आम लोगों से यह सुनने को मिलता है कि अमुक विद्यालय के अमुक अध्यापक ने बच्चों को इसलिए कक्षा में फेल कर दिया या फिर शारीरिक दंड दिया क्योंकि अध्यापक ने जो विद्यालय से बाहर ट्यूशन की जो दुकान सजा रखी थी उस पर वह जाकर शिक्षा नामक सामग्री  नहीं खरीदता है ऐसी स्थिति में समाज के लोगों का शिक्षक के प्रति क्या दृष्टिकोण होगा?  ऐसा नहीं है कि सभी अध्यापक ट्यूशन पढ़ाते हैं परंतु ट्यूशन ना पढ़ाने वाले शिक्षकों का अनुपात बहुत कम है इसका उदाहरण आप  अपने आस पड़ोस के परिवारों में देखोगे तो प्रत्येक बच्चे को ट्यूशन दुकान में आता जाता पाओगे और यदि बच्चे ट्यूशन दुकानों में नहीं जा रहे हैं तोअध्यापक अपनी ट्यूशन दुकान को लेकर आपके घर पहुंच जाता है ऐसा भी आपको देखने को मिलेगा कि कुछ परिवारों के बच्चे को तो शिक्षण कराने दो या दो से अधिक अध्यापक उनके घर पर आते हैं क्या ऐसी स्थिति में आप चाहते हैं कि शिक्षक का मान सम्मान या प्रतिष्ठा समाज में बढ़ेगी ?
3 कुकुरमुत्ता की तरह शिक्षक शिक्षण विद्यालय खुलना:- पिछले लगभग 15 -20 वर्षों में तो शिक्षक- शिक्षण विद्यालय परचून की दुकान की तरह खुल गई हैं| जिसके कारण निरंतर शिक्षक -शिक्षण गुणवत्ता में काफी कमी देखी जा सकती है| इन 15-20 वर्षों में आपने बहुत से ऐसे लोगों को भी शिक्षक बनते देखा होगा जिनका पहले व्यवसायिक विषय या क्षेत्र कुछ और था परंतु वहां पर सफलता नहीं मिलने के कारण उन्होंने शिक्षक- शिक्षण विद्यालय नामक दुकानों से बिना विद्यालय जाए धन्य बल के आधार पर शिक्षक बनने की योग्यता प्राप्त कर ली |आए दिन आप  को समाचार पत्रों के माध्यम से पढ़ने को तथा लोगों के द्वारा सुनने को मिलता है कि फला शिक्षक परीक्षा का पेपर लीक हो गया या मेरी परीक्षा में तो अच्छे अंक थे परंतु साक्षात्कार में धनबल न देने के कारण मुझसे कम अंक वाला विद्यार्थी का चयन हो गया या फिर किसी मंत्री ने संपूर्ण चयन प्रक्रिया को अपने मन मुताबिक बदल दिया है कुछ नेताओं को शिक्षण चयन प्रक्रिया में धांधली के कारण जेल तक भी जाना पड़ा है ऐसी स्थिति में समाज में शिक्षक के प्रति लोगों का क्या दृष्टिकॉन होगा? 
4 शिक्षक को शिक्षण से अलग अन्य कार्यों में  लगाना:- वर्तमान समय में आप शिक्षक को विद्यालयों में शिक्षण करते हुए कम तथा विद्यालय से बहार अन्य कार्यों जैसे जनगणना के कार्यों ,पोलियो  की दवा पिलाते हुए, बच्चों को ड्रेस वितरित करते हुए ,पुस्तक वितरित करते हुए ,मतदान कराते हुए ,मतदान गणना कराते हुए ,मिड डे मील वितरण एवं उसका लेखा-जोखा  रखते हुए अधिक पाओगे ऐसे में शिक्षक का जो मूल कार्य शिक्षण है उसे सही से नहीं कर पाते हैं आपने अधिकतर अध्यापकों से सुना होगा कि जब वह जनगणना या मतदान पहचान पत्र या अन्य सरकारी काम से लोगों के घर घर जाते हैं तो अधिकतर लोगों का व्यवहार उनके साथ शिक्षक जैसा न होकर एक मजदूर या फिर एक भिकारी के जैसा बर्ताव  लोग उनके साथ  करते हैं |निश्चित रूप से जब आप उनसे एक शिक्षक का कार्य ने लेकर एक मजदूर या क्लर्क का कार्य ले रहे हैं तो समाज में भी लोगों का उनके प्रति दृष्टिकोण मजदूर या फिर क्लर्क की तरह ही होगा| निश्चित रूप से एक शिक्षक के प्रति जैसा  व्यवहार होना चाहिए वैसा तो नहीं होगा|
5 नो डिटेंशन पॉलिसी(No Detention policy) :- नो डिटेंशन पॉलिसी शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 का अहम हिस्सा है| शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 जो 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की बात करता है| एक प्रावधान इस अधिनियम में यह है कि बच्चों को आठवीं तक किसी कक्षा में अनुत्तीर्ण घोषित कर उसी कक्षा में न रखा जाए अर्थात अगर किसी छात्र के प्राप्तांक कम भी है तो उसे पासिंग ग्रेड देकर अगली कक्षा में भेज दिया जाए |इस पॉलिसी का प्रभाव यह देखने को मिलता है कि जो बच्चे अच्छे से पढ़ रहे थे उनको अगली कक्षा में भेज दिया जाता है और जो नहीं पढ़ रहे थे उन्हें भी अगली कक्षा में पासिंग ग्रेड  देकर भेज दिया जाता है| जिससे इसका प्रभाव मेहनत करने वाले बच्चों पर पड़ता है क्योंकि उसको पता चल जाता है कि बिना मेहनत करे ,बिना शिक्षा ग्रहण करें ,बिना सीखे ,बिना विषय में पास हुए अगली कक्षा में प्रवेश मिल जाता है| उसको पता लग गया है कि अध्यापक के हाथ में कुछ नहीं है| जिससे वह ने तो अध्यापक की कक्षा में सुनने को तैयार है न हीं वह गृह कार्य पूर्ण करता है न हीं वह अब अनुशासन में रहता है क्योंकि उसे पता है कि पालिसी ऐसी आई है कि न तो अध्यापक उसे पीट सकता है न हीं डांट सकता है और न ही उसे फेल कर सकता है जिस कारण बच्चों का अध्यापक के प्रति भी कोई अच्छा दृष्टिकॉन नहीं रहता है |क्योंकि बच्चों को 6 से 14 वर्ष की आयु में अपने अच्छे-बुरे का अधिक ज्ञान नहीं होता है और कहीं ना कहीं जो उसका शिक्षा का आधार बनना चाहिए था वह नहीं बन पा रहा है| विशेष तौर पर सरकारी विद्यालय में तो आप यह देख सकते हैं| क्या ऐसे में शिक्षक का समाज में वही सम्मान होगा जो प्राचीन काल में था? 
6 नैतिक शिक्षा का धीरे-धीरे पतन:- आपको देखने और सुनने को मिलता है कि आए दिनों विद्यालयों में शिक्षकों के साथ छात्रों या फिर उनके अभिभावकों के द्वारा दुर्व्यवहार होता रहता है |कहीं यह समाज में शिक्षक के प्रति कम हो रहे सम्मान का एक उदाहरण तो नहीं? इसका मुख्य कारण सामाजिक मूल्यों में निरंतर गिरावट एवं पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति का बच्चों पर नशा की तरह हावी होना है| यदि आज के युग में शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया के दौरान बच्चों से छोटी सी गलती होने पर या गृह कार्य पूर्ण करके ने लाने पर  डांट देता है या फिर पीट देता है  तो बच्चे या अभिभावक आपा खो देते हैं अध्यापक की पिटाई तक की नौबत आ जाती है विगत वर्षों में तो  काफी अध्यापकों को  अपनी जान तक गंवा देनी पड़ी है |जब अध्यापक से जाने या अनजाने में किसी बच्चे के साथ दुर्व्यवहार हो जाता है तो मीडिया वाले उस खबर को बढ़ा चढ़ाकर दिखाते हैं जैसे देखिए गौर से इस चेहरे को शिक्षक के वेश में यही वह हैवान है ,यही वह दरिंदा है ,जिसने मासूम से इस बच्चे के साथ गलत व्यवहार किया है |उस एक अध्यापक की वजह से संपूर्ण शिक्षक समाज को  लोग शक की नजर से  देखने लगता है| प्राचीन काल में नैतिक मूल्यों का विद्यालयों में प्रत्येक कक्षा में  एक अनिवार्य विषय हुआ करता था जिसके अंक बच्चों के कुल अंकों में जोड़े जाते थे लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली में मानो यह विषय विलुप्त सा होता जा रहा है| यदि किसी विद्यालय में यह विषय है भी तो उसके अंक कुल अंकों में नहीं जोड़े जाते हैं |आप अच्छी तरह से  समझ सकते हो जिस विषय के अंक परीक्षा परिणाम में नहीं जोड़े जाते हैं उस विषय को पढ़ाने तथा पढ़ने में छात्र तथा अध्यापकों की कितनी रुचि होती है अतः समाज के सामाजिक मूल्यों का जिस गति से हास हुआ है उसी गति से समाज में शिक्षक के मान सम्मान तथा प्रतिष्ठा मैं भी हास देखने को मिलता है


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