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रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच मांस दियो शिवि भूप ने दीन्हों हाड़ दधीच


तरूवर फल नहि खात है सरवर पियत नहि पान
कहि रहीम पर काज हित संपति सचहिं सुजान ।


अर्थ : बृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाता है और सरोवर अपना पानी स्वयं नही पीता है।ज्ञानी
और सज्जन दूसरों के हित के लिये धन संपत्ति का संग्रह करते हैं।


रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच
मांस दियो शिवि भूप ने दीन्हों हाड़ दधीच ।


अर्थ : परोपकार करने में स्वार्थ; अपना पराया मित्रता आदि नही सोचना चाहिये।
राजा शिवि ने कबूतर की प्राण रक्षा हेतु अपने शरीर का माॅस और दधीचि ऋशि ने अपनी हड्ईियाॅ दान दी थी।
परोपकार में जीवन का बलिदान करने से भी नही हिचकना चाहिये ।


काह कामरी पागरी जाड़ गये से काज
रहिमन भूख बुझाईये कैस्यो मिले अनाज ।


अर्थ : जिस कपड़ा से जाड़ा चला जाये-वही सबसे अच्छा चादर या कम्बल कहा जायेगा।
जिस आज से भूख मिट जाये वह जहाॅ से जैसे भी मिले-पही उत्तम है।


को रहीम पर द्वार पै जात न जिय सकुचात
संपति के सब जात है विपति सबै लै जात   ।


अर्थ : कोई भी ब्यक्ति किसी के भी दरवाजे पर माॅगने के लिये जाने में संकोच करता है।
लेकिन लोग कश्अ में धनवान के यहॅा हींजाते हैं अैार विपत्ति हीं उन्हें याचना के लिये
ले जाती है।धनवान को कश्अ में पड़े ब्यक्ति का आदर करना चाहिये।


जो घर हीं में घुसि रहै कदली सुपत सुडील
तो रहीम तिन ते भले पथ के अपत करील  ।


अर्थ : केला का पौधा केबल घर आॅगन की शोभा बढाता है।उनसे तो बेर बबूल के कांटे
बाले पौधे अच्छे हैं जो रास्ते पर राहगीर और पक्षियों को आश्रय देते हैं।


 


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