फ्यूचर लाइन टाईम्स
हैदराबाद की डा. प्रियंका रेड्डी कांड
डॉ प्रियंका रेड्डी के दोषियों को वहां की पुलिस ने मुठभेड़ में मार डाला।वे तथाकथित तौर पर पुलिस हिरासत से भाग रहे थे। क्या यह मुठभेड़ राज्य अथवा केंद्र की सरकार के निर्देश पर हुई होगी?लोग खुश हैं और ऐसे लोगों का ऐसा ही अंजाम होने की वकालत कर रहे हैं। फैसला ऑन द स्पॉट लोगों में जोश भरता है। ऐसा न्याय मे देरी अथवा न्याय न मिलने की निराशा से होता है। क्या सरकारों को भी अपने ही न्याय तंत्र पर भरोसा नहीं रहा? जघन्य अपराधियों जिनके डर से कोई गवाही देने को तैयार न हो,को सुनियोजित तरीके से पुलिस मुठभेड़ में मारने की स्थापित परंपरा रही है।इसे अंग्रेजों ने प्रारंभ किया और आजाद भारत की सरकारों ने जारी रखा। क्या यह न्याय की आकांक्षा को पूरा करता है। दरअसल यह सरकार की विफलता का प्रमाण है। उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री (रणवेंद्र सिंह) ने एक साक्षात्कार में कहा,-समाज है तो अपराध होगा ही। अपराध न होने की गारंटी तो भगवान श्रीराम भी नहीं दे सकते।' समाचार माध्यम और सोशल मीडिया हाथ धोकर मंत्रीजी के पीछे पड़ गए। क्या मंत्रीजी ने सच नहीं कहा। अपराध जीवंत समाज का हिस्सा होता है।समूची धरती पर अपराध रहित कोई जगह नहीं है। अपराध रोकना, अपराधियों को हतोत्साहित करना राज्य की जिम्मेदारी है। मंत्री जी गलत है तो चार आरोपियों को एक साथ मुठभेड़ में मार डालना कहां सही है। संभवतः हम एक अराजक, अविश्वसनीय राज्य व्यवस्था और क्रूर समाज में बदल रहे हैं। दिलचस्प यह है कि हम इसके अंजाम से पूरी तरह लापरवाह हैं।
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