फ्यूचर लाइन टाईम्स
मैं उनके साध्वी के तमगे से इत्तेफाक नहीं रखता। सिर्फ प्रज्ञा ठाकुर से काम चलाया जा सकता है। कभी कभी एक साधारण आदमी भी किसी बात पर बिना बात अकड़ जाता है। हालांकि अकड़ना मुर्दों की खासियत होती है, जिंदा लोग तो नरम होते हैं। हां तो कभी कभी एक साधारण आदमी भी किसी बात पर अकड़ जाता है।खास आदमी (चाहे वह वक्त की मेहरबानी से खास बना हो)को अकड़ने से बचना चाहिए।सो प्रज्ञा ठाकुर जो भोपाल से भाजपा की सांसद हैं, स्पाइस जेट के विमान में दिल्ली से भोपाल जाते हुए नंबर एक सीट पर बैठने के लिए अकड़ गई। उन्हें यह सीट आवंटित हुई थी। परंतु व्हीलचेयर पर आने के कारण सुरक्षा कारणों से उन्हें सीट बदलने के लिए कहा गया जो उन्हें नागवार गुजरा। ऐसा हो सकता है। बात समझ में न आने पर या जब तक बात समझ में आये तब तक बात बढ़ चुकी हो तो बात बिगड़ जाती है। प्रज्ञा ठाकुर कथित रूप से बम धमाकों में शामिल रही हैं। उन्हें सुरक्षा एजेंसियों ने बुरी तरह प्रताड़ित किया था। जेल में कई वर्ष गुजारने के बाद उनका चित्त कुंठित जैसा जान पड़ता है। विमान की सीट हो या गाहे-बगाहे बयानबाजी, मामला कुछ अटपटा रहा है। भाजपा के लिए वह वर्तमान में सिरदर्द जैसी हैं। दर्द होने पर सिर को फोड़ा नहीं जा सकता और इस तरह के दर्द की कोई कारगर दवा होती नहीं है।
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