फ्यूचर लाइन टाईम्स
ध्यान मुद्रा में बैठ कर गहरा लम्बा लें और श्वास को धीरे धीरे छोडते हुए मन ही मन ईश्वर के सर्वोत्तम ओम् नाम का उच्चारण करें । प्रात: सायं और जब भी समय मिले कम से कम बीस मिन्ट तक इस प्रकार ओम् नाम का अर्थ सहित जप करें- मन को एकाग्र करने,सब विघ्नों को दूर करने और ईश्वर की पूजा अराधना साक्षात्कार की यह सर्वोत्तम विधि है । ओम् का अर्थ है- अनन्त ज्ञान बल व आनन्द से युक्त एक दिव्य चेतन पदार्थ जो सृष्टि का कर्ता धर्ता हर्ता और कर्म फल प्रदाता है, उसी ने सूरज चांद तारों की रचना की है, उसी ने हमारे सुख व कल्याण के लिये हवा पानी रोशनी खुराक व वेदों की रचना की है । ओम् जप के साथ साथ इस अर्थ का चिन्तन करते रहना चाहिये । यह ध्यान विधि ईश्वर साक्षात्कार की कुंजी है । ध्यान व पूजा अर्चना की अन्य विधियों में समय व्यय करना उचित नहीं । ओ३म् नाम को छोड अन्य नामों का जप इतना लाभप्रद नहीं । उठते बैठते,सोते जागते व घर दफ्तर के कार्य करते मन ही मन ओम् का जप बच्चे बूढे सब कर सकते हैं | यह वह जादू की छडी है जो सबको एकसूत्र में पिरो सकती है और पाषाण पूजा,जात पात व मत मतान्तरों के कुसंस्कारों को क्षीण कर सकती है सब वेदों उपनिषदों दर्शनों ने भी ओम् नाम की बडी महिमा गाई है । मान लीजिये आपको एक घंटा ध्यान करना है, अब आप या तो उसे विचारों या श्वास को साक्षी भाव से देखने में लगा दीजिये या मूर्तियों की पूजा अर्चना में लगा दीजिये या फिर ओम् के जप, महिमा व उपकारों के चिन्तन में लगा दीजिये । इन विधियों में कौन सी विधि अधिक कारगर उपयोगी सार्थक व वेदानुकूल है- यह निर्णय आपको स्वयं ही करना है।
समस्त वेद जिस पद का बारम्बार वर्णन करते हैं , सारे तप जिसको बतलाते हैं, वह ओम् है । वह ही अक्षर ब्रह्म है, वह ही सबसे बडा़ है, यह ओंकार रुप आश्रय सबसे श्रेष्ठ है,सर्वोपरि है,अन्तिम है , अविनाशी है, शान्ति और कान्ति को देने वाला है । इस आश्रय को पाकर मनुष्य ब्रह्मज्ञानियों में भी पूज्य बन जाता है ।
कठोपनिषद् १.२.१५,१६,१७
अगर ध्यान के लिए आपको कुछ भी छोड़ना पड़े, छोड़ दें, लेकिन ध्यान करना न छोड़ें। आप ध्यान में जितने अधिक नियमित होंगे उतनी अधिक गहराई प्राप्त करेंगे। ध्यान एक बहुत नाजुक चीज है और नाजुक चीज़ को बहुत नियमितता, निरंतरता की आवश्यकता होती है। यदि आप छोटी चीजों को पूरा नहीं करेंगे तो कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। लेकिन ध्यान उच्चतम है, और इसके माध्यम से दिव्य की प्राप्ति होती है। यदि आप ध्यान नहीं करते हैं, तो जीवन के सत्य से चूक जाएंगे, परमात्मा से चूक जाएंगे। नियमित ध्यान करने से अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान आदि यम नियमों के पालन करने में भी सहायता मिलती है ।
Mind is the root cause of all problems. Problems grow on mind like leaves on trees. You can go on pruning the leaves; That is not going to destroy the tree. If you want to get rid of problems cut the roots and not leaves.That's what we call meditation. Meditation is cutting the roots.
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