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नियम-उपासना का रक्षा कवच

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


 हम सब धन्य हैं कि हमें मनुष्य जन्म मिला और मनुष्य जन्म को प्राप्त करके हमने यम अर्थात अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का पालन करते हुए उपासना का बीज बोया


जब सुसंस्कृत बीज बोया है तो अंकुरित होगा ही। इस उपासना-अंकुर की रक्षा, इसका का पोषण नियम के पालन से किया जाता है। नियम उपासना सप्तपदी का दूसरा पद है, दूसरी सीढ़ी है। नियम भी यम की भांति पांच हैं। शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान। 
प्रथम शौच अर्थात शुचिता रखना मन की, तन की, वस्त्र की और परिवेश। मन की शुचिता- किसी से ईर्ष्या द्वेष ना करना।
संतोष अर्थात धैर्य रखना। कर्म करते हुए फल प्राप्ति में देरी विदित हो तो हड़बड़ाहट ना करना, कर्मफल में विश्वास करना कि किया हुआ कर्म व्यर्थ नहीं जाता और कर्मशील बने रहना।
तप अर्थात भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, मान-अपमान, लाभ-हानि, सुख-दुख, जीवन-मरण किसी भी अवस्था में उपासना के पथ का त्याग ना करना, यम का पालन करना और नियम से उपासना-अंकुर की रक्षा करना।
स्वाध्याय अर्थात मोक्ष विद्या विधायक आर्ष-ग्रंथों का पढ़ना-पढ़ाना सुनना-सुनाना स्वाध्याय कहता है। 
ईश्वर परिधान सर्वस्व अर्थात तन-मन-धन परब्रह्म गुरु अर्थात ईश्वर को अर्पित कर देना। उसकी आज्ञा- वेद के अनुसार चलना एवं संसार को चलाना। 
ये पांच नियम हैं, इन नियमों का पालन आर्य सभ्यता में होता ही आया है। जब से विदेशियों का भारत पर आक्रमण हुआ और वे विजयी हुये, तब से यहां गंदगी, अशुचिता फैल गई और रोग आदि का बहुत अधिक वर्धन हुआ। इसीलिए आज हमें स्वच्छ-भारत अभियान चलाना पड़ता है और धैर्य तो कहीं दिखाई पड़ता ही नहीं। संतोष के नाम पर आलस्य को परोसा जाता है। जब संतोष ही नहीं तो तप का क्या कहना? अब तो कहने लगे हैं- To err is Human आदमी गलती का पुतला है। पर उपासक गलती का पुतला नहीं होता। आज मोक्ष विद्या विधायक आर्ष-ग्रंथों का पठन-पाठन पर जैसे बैन लगा हुआ है, इनको पाठ्यक्रम में सम्मिलित ही नहीं किया जाता। उनको अछूत ग्रंथ बनाकर पुस्तकालयों से बहुत दूर कर दिया गया है। केवल आर्यों के माध्यम से ही आर्ष ग्रंथ वर्तमान में उपलब्ध हैं। जब स्वाध्याय नहीं तो ईश्वर प्रणिधान कौन करे? कोई पत्थरों को अर्पित हो जाता है, कोई अन्य गुरु-घंटालों को! परब्रह्म गुरु-ईश्वर को जानते ही नहीं! उसकी आज्ञा वेद को पढ़ते ही नहीं तो पालन कैसे हो? अनजाने में पालन हो रहा है अथवा नहीं हो रहा इसका ही परिज्ञान! तो गौरव कैसे हो? बिना गौरवान्वित आर्य बने उपासना का बीज कौन बोये? हम सब सिद्धांतों को समझ रहे हैं। आइए दृढ़ता पूर्वक यम से उपासना का बीज होते हुए नियम से उसके अंकुरण का रक्षण करें, पोषण करें, तभी यह उपासना रूपी वट-वृक्ष हमें समाधि का फल देगा। ओमेश्वर हम सबको उपासना के पथ पर अग्रसर करे। शुभकामनाएं।


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