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निर्भया कांड और मानवाधिकार कार्यकर्ता

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


 दिसम्बर 16 आने वाला है। निर्भया कांड की बरसी है। टीवी चैनल पर अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ता बलात्कार के विरोध में बड़ी बड़ी बातें कहते मिलेंगे। मगर हम आज भी वही है जहाँ हम पहले थे।


कुछ नहीं बदला। जानते है क्यों? क्योंकि जो लोग सबसे अधिक निर्भया को लेकर सबसे अधिक विलाप करेगे वो ईमानदार नहीं हैं।वे सबसे बड़े पाखंडी है।


वही कार्यकर्ता जनवरी से लेकर नवम्बर तक क्या कार्य करते हैं, यह किसी ने नहीं सोचा। हम आपको बताते है वे सारा साल क्या करते है। जनवरी में Kiss of Love के नाम से सड़कों पर चूमाचाटी करते है। फरवरी में LGTB के नाम पर लड़के लड़कियों के और लड़कियां लड़कों के इन्द्र धनुषी कपड़ें पहन कर सड़कों पर परेड निकालेंगे। मार्च में इन्टरनेट पर अश्लील पोर्न साइट को प्रतिबंधित करने के सरकार के फैसले के विरोध में सड़कों पर परेड निकालेंगे। अप्रैल में JNU में पेड़ों पर कंडोम बांध कर खुशी प्रकट करेंगे। मई में खजुराओ की नंगी मूर्तियों की तस्वीरों की Art exhibition यानि कला प्रदर्शनी लगाएंगे। जून में कामसूत्र जैसी किसी अश्लील फ़िल्म की बम्पर कमाई करवाएंगे। जुलाई में सन्नी लेओनी को सबसे प्रतिभाशाली अभिनेत्री का ख़िताब प्रदान करेंगे। अगस्त में 50 शेड्स ऑफ़ ग्रे जैसे अश्लील उपन्यास को चटकारे लेकर पढेंगे। सितम्बर में थाईलैंड में मालिश करवाने जायेंगे। अक्टूबर में पिछली छोड़कर अगली के पीछे भागेंगे व नवम्बर में किसी प्रतिबंधित sex पावर बढ़ाने वाली दवा के दुष्प्रभाव से अस्पताल में भर्ती होंगे।


इन तथाकथित मानव अधिकार कार्यकर्ताओं से,चटर-पटर अंग्रेजी बोलने वालों से, नास्तिकों से, साम्यवादियों से, जीन्स और काला कुर्ता पहन कर डपली बजाने वालों से, बड़ी बिंदी गैंग से, NGO धंधे वालों से, आधुनिक सोच वालों से, civil society वालों से हमें दूर ही रखना हे ईश्वर क्योंकि इन पाखंडियों से तो हम जैसे धर्म मानने वाले, हिंदी बोलने वाले, नशा न करने वाले, पुरानी सोच वाले, अपनी सभ्यता और संस्कृति को मानने वाले, ब्रह्मचर्य और संयम विज्ञान को मानने वाले गंवार ही बहुत अच्छे है।


 


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