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नागरिकता संशोधन विधेयक-२०१९ , इसमें आपत्तिजनक क्या है? राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 



हो सकता है इसके प्रावधानों में कुछ छिपा हुआ हो अथवा इसे लागू करने के तरीकों को लेकर सरकार का छिपा हुआ एजेंडा हो। यह भी हो सकता कि दूसरे राजनीतिक दलों के समान अभी हमें यह समझ नहीं आया हो परंतु जितना समझ में आया है उसमें कुछ गलत नहीं है। नागरिकता संशोधन विधेयक जो कल राज्यसभा से भी पारित हो गया, किसी प्रकार भी भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है। यह १९५५ के उस विधेयक जिसमें भारत में रहने वाले विदेशी लोगों को १२ वर्ष पूरे करने पर नागरिकता देने का प्रावधान था में मामूली बदलाव करेगा। इससे २०१४ से पूर्व पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान के भारत में रह रहे हिन्दू,सिख, ईसाई, पारसी,जैन धर्म के लोगों को भारत अपना नागरिक स्वीकार कर लेगा। क्या इससे भारत में रह रहे और यहीं के वाशिंदे मुस्लिमों के हितों को कोई नुक़सान पहुंचेगा? इस सवाल का जवाब सरकार के तौर तरीके देखने के बाद मिलेगा। एक बात जो तय है और इस सरकार का एजेंडा भी है कि भारत में रहने वाले सभी लोगों को मुस्लिम समाज को भी देश के कानून का पालन करना ही होगा।शरीयत और दूसरे कानून देश के कानून से ऊपर नहीं हो सकते हैं। विपक्षी दलों का विरोध मुस्लिम समुदाय की रक्षा के लिए न होकर खुद को मुस्लिम समर्थक दिखाने के लिए ज्यादा है। फिर भी सरकार की चाल पर सतर्क निगाह रखने में क्या बुराई है।


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