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मनुष्य किसे कहते हैं ?

फ्यूचर लाइन टाईम्स 
 
आचार्य चाणक्य के अनुसार मनुष्य वह है जो दानी है, शील से सम्पन्न है, शुभ गुणों से सुभूषित है तथा जिसका आचरण श्रेष्ठ है।


महर्षि दयानन्द सरस्वती ने मनुष्य की परिभाषा इस प्रकार की है :-
"मनुष्य उसी को कहना कि जो मननशील होकर स्वात्मवत् अन्यों के सुख-दुःख और हानि-लाभ को समझे, अन्यायकारी-बलवान् से भी न डरे और धर्मात्मा निर्बल से भी डरता रहे। इतना ही नहीं किन्तु अपने सर्वसामर्थ्य से धर्मात्माओं की चाहे वे महा अनाथ, निर्बल और गुणरहित क्यों न हों उनकी रक्षा, उन्नति, प्रियाचरण और अधर्मी चाहे चक्रवर्ती, सनाथ, महाबलवान् और गुणवान् भी हों तथापि उनका नाश, अवनति और अप्रियाचरण सदा किया करे अर्थात् जहाँ तक हो सके वहाँ तक अन्यायकारियों के बल की हानि और न्यायकारियों के बल की उन्नति सर्वथा किया करे। इस काम में चाहे उसको कितना ही दारुण दुःख प्राप्त हो, चाहे प्राण भी भले ही जाएँ परन्तु इस मनुष्यपन रुप धर्म से पृथक् कभी न होवे।"


सब दानों में प्राणदान सबसे बढ़कर है, जो धर्म, सत्य और न्याय की वेदी पर अपने प्राणों का बलिदान कर सके वही सच्चा मनुष्य है।


शीलं परं भूषणम्
शील मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण है। शील से रहित मनुष्य तो पशु ही है।


 भर्तृहरि लिखते हैं―
येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता
मनुष्यरुपेण मृगाश्चरन्ति ।।
―(नीतिश० १२)


जिन मनुष्यों में न विद्या है, न तप है, न दान देने की भावना है, न ज्ञान है, न शील है, न ही जीवन में कोई उत्तम गुण है और न धर्म है, वे पृथिवी पर भाररुप पशु ही हैं, जो मनुष्य के रुप में विचरा करते हैं।


मनुष्य की परिक्षा का मापदंड
यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते
निघर्षणच्छेदनतापताडनैः ।
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते
त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ।।२।।
     अध्याय ५
भावार्थ ― जैसे सोने के खरे और खोटेपन को जानने के लिए उसकी घिसने, काटने, तपाने और कूटने से परीक्षा की जाती है, वैसे ही मनुष्य परीक्षा भी दान, शील, गुण और आचरण से होती है।


पवित्र वेद में कहा है―
अकर्मा दस्युः ―ऋ० १०/२२/८
_कर्म न करने वाला मनुष्य दस्यु है।_


इसका फलितार्थ यह हुआ कि :--
सुकर्मा आर्यः ―शुभ कर्म करनेवाला, आचरणवान् मनुष्य आर्य है, श्रेष्ठ मनुष्य है।


गुणैरुत्तुङ्गतां याति नोच्चैरासनसंस्थितः ।
प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते ।।


_मनुष्य गुणों से ही उच्चता प्राप्त करता है, ऊँचे आसन पर बैठने से नहीं। क्या राजभवन के शिखर पर बैठने से कौआ हंस बन सकता है? कदापि नहीं।_*


आर्य = मनुष्य + वेदिक संस्कार
ब्राह्मण = आर्य + ब्रह्म ज्ञान
क्षत्रिय = आर्य + क्षत्र ज्ञान
वैश्य = आर्य + व्यापार ज्ञान
शूद्र = आर्य + तकनीकी ज्ञान
अतिशुद्र = अनार्य (संस्कारहिन)


आर्य के लक्षण - दृढ प्रतिज्ञा पालन का विचार, शुद्ध प्रभु भक्ति का विचार, स्वामी अथवा मित्र के लिए तन, मन, धन से निष्ठा निभाना और वैदिक धर्म पर दृढ़ विश्वास।


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