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मैं सेंटा क्लाज नहीं हूं : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


मैं आज सेंटा क्लाज बना हूं।कल सुपर बाजार टाइप एक डिपार्टमेंटल स्टोर में जौकर बना था। उससे पहले दिन एक शादी में महात्मा गांधी का बुत बनकर तीन घंटे बैठा रहा था। बच्चे और कुछ बड़े लोग भी मुझे छूकर और कभी मेरी ऐनक हिलाकर जानना चाहते थे कि मैं गांधी हूं या बुत। एक बार मैं चार्ली चैपलिन का बुत बना।बाप रे, जिसे एक क्षण भी चैन से बैठना मुश्किल हो उसका बुत बनना।तब भी बड़े बड़े लोगों ने मुझे चिकौटी काटकर मेरी परीक्षा ली थी। मुझे बुत बनना आता नहीं था। एक दिन मुझे असहनीय भूख लगी थी। ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था, बैठना तो मुश्किल था ही। ठेकेदार से टकरा गया। उसने पेट भरने का भरोसा दिया और मैं बुत बन गया। लोगों को मुझे देखकर मजा आता है हालांकि वे मुझे पहचानते नहीं हैं क्योंकि जब मैं अपने असल रूप में होता हूं तो उन्हें कुछ मजा नहीं आता। मैं बेहद गरीब हूं ना। मेरे पास पहनने के लिए जरूरी कपड़े भी नहीं हैं।जब मुझे नकलची बनने का काम मिलता है और जो कपड़े पहनने को मिलते हैं,मेरा मन करता है कि उन कपड़ों को लेकर रफूचक्कर हो जाऊं। परंतु ऐसा हो नहीं पाता, ठेकेदार हमेशा कुत्ते की तरह मेरे पीछे रहता है।आज क्रिसमस है। कहा जाता है कि आज के दिन सेंटा क्लाज गरीबों को उपहार देता है। मुझे यही काम दिया गया है। मैं भी तो गरीब हूं। क्या मैं इनमें से एक उपहार खुद के लिए ले लूं? नहीं, क्योंकि ठेकेदार मेरे पीछे कुत्ते की तरह लगा हुआ है। बड़े बड़े नकलचियों के इस दौर में मैं एक दिन शैतान बनना चाहता हूं। शैतान बुरा होता है परंतु वह खुद का मालिक होता है।उसका कोई ठेकेदार नहीं होता।


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