फ्यूचर लाइन टाईम्स
दादुर मोर किसान मन लग्यौ रहै धन मांहि
पै रहीम चातक रटनि सरवर को कोउ नाहिं ।
अर्थ : दादुर मोर एवं किसान का मन हमेशा बादल वर्शा मेघ के प्रेम में लगा रहता है।किंतु
चातक को स्वाति नक्षत्र में बादल के लिये जो प्रेम रहता है वैसा इन तीनेंा को नही
रहता है।चातक अनूठे प्रेम का प्रतीक है।
मानो कागद की गुड़ी चढी सु प्रेम अकास
सुरत दूर चित खैचई आइ रहै उर पास ।
अर्थ : प्रेम भाव कागज के पतंग की तरह धागा के सहारा से आकाश तक चढ जाता है।प्रेमी को देखते हीं वह चित्त को खींच लेता है और प्रेम हृदय से लग जाता है।
पहनै जो बिछुवा खरी पिय के संग अंगरात
रति पति की नौैैैैैैबत मनौ बाजत आधी रात ।
अर्थ : रति प्रिया नारी के पैरों की बिछुवा रात में प्रिय के साथ अंगराई लेते समय मानो कोई मंगल घ्वनि-पवित्र स्वर उत्पन्न कर रहा है।
बिरह विथा कोई कहै समझै कछु न ताहि
वाकंे जोबन रूप की अकथ कथा कछु आहि ।
अर्थ : बिरह के दुख को कहने पर भी कोई उसे समझ नही सकता है।एक रूपवती नवयौवना
के समक्ष प्रेमी अपने विरह को ब्यक्त करता है परन्तु वह ऐसा दिखाती है कि वह कुछ
नही समझती है।
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