फ्यूचर लाइन टाईम्स
देश में कोई माहौल न था।लोग नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी के बहाने सरकार को कोस कर अपनी भड़ास शांत कर रहे थे।
ख़िलाफत वाले सियासी दल सरकार से पार पाने की कोशिशों में पस्त हो रहे थे कि नागरिकता संशोधन कानून आ गया। इसके बारे में अभी तक जितनी समझ बनी है, उसमें किसी को क्या नुकसान हो सकता है, यह साफ नहीं हो सका है। फिर भी हंगामा बरपा है। दिल्ली की सियासत में दंगों की गुंजाइश बनती थी मगर उत्तर-दक्षिण से दंगों की खबरें चौंका रही हैं। विरोध करने वाले एक ही कौम के लोग क्यों हैं और इस प्रकार दंगा फसाद से हासिल क्या होगा। सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट करने से क्या होगा। योगी आदित्यनाथ के दावे को दंगाईयों ने हवा में उड़ा दिया कि उत्तर प्रदेश दंगों से महफूज है। सेवानिवृत्त आईपीएस विभूति नारायण राय ने अपने चर्चित उपन्यास 'कर्फ्यू' में एक स्थान पर मुस्लिमों के खिलाफ दंगों के आरोपों पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि क्या यह कौम आत्महत्या जैसा शौक रखती है।आज वो देख रहे होंगे कि देश भर में दंगों में केवल और केवल कौन शामिल है। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है। देश की रगों में पैदा और यहीं परवरिश पाने वाली कोई भी क़ौम अराजक क्यों हो रही है। राजनीतिक मंचों, अदालत और जनजागरण के माध्यम से हर विरोध संभव है।दंगे किसी समस्या का हल नहीं
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