फ्यूचर लाइन टाईम्स
मस्तिष्क का ज्ञान रखने वाले कहते हैं कि नशा प्रारंभ में तंत्रिका तंत्र को सुर्खरू करता है। इसीलिए आदि अनादि काल से नशे का कारोबार जिंदा है।नशे को हराम कहने वाली कौम के बादशाहों की शराब,कबाब और शबाब के प्रति आसक्ति के किस्सों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। हुमायूं अफीमची बताया जाता है और अपने इसी शौक में वह महल की सीढ़ियों से गिरकर दुनिया से रुखसत हुआ था। एक और बादशाह (रंगीला)अल्लसुबह तक शराब पीने के बाद जब सोता था तो तभी जागता था जब सूर्य नारायण पश्चिम में छिपने का प्रयास कर रहे होते थे।नशा एक लत है जो लग जाये तो छुड़ाए न छूटे।धन्, शारीरिक और रूप के नशे की लत भी कम असर नहीं रखती। सत्ता का नशा इन सबके ऊपर कूदता है। गुजरात में हमेशा से नशाबंदी है। वहां आमतौर पर लोगों को नशे की लत नहीं पाई जाती। फिर भी शराब पीने वाले वहां भी हैं और राजस्थान से तस्करी के जरिए चाहने वालों तक पहुंच ही जाती है। एक बिहारी मित्र बताते हैं कि बिहार में अब शराब गरीबों का शौक नहीं रहा और जो गरीब अभी भी इस शौक को फरमा रहा है वह पहले के मुकाबले तेजी से और गरीब हो रहा है। हालांकि बिहार में शराबबंदी है। उत्तर प्रदेश और वे सभी राज्य जहां शराब चालू है, वहां की सरकारें प्रतिवर्ष शराब बिक्री का दायरा बढ़ा रही हैं। इसके बरअक्स एक मद्मनिषेध विभाग भी कायम रहता है जो पुरजोर तरीके से लोगों को शराब के नुक़सान से ताकीद करता रहता है।नशे की लत का आलम यह है कि इसके अभाव में लोग मुरझाने लगते हैं और नशा ग्रहण कर भी मुरझा ही जाते हैं। आत्मशक्ति से इसका परित्याग संभव है परंतु नशा सबसे पहले इसी शक्ति का हरण करता है। प्रेरणा से यह शुरू होता है और कुतर्कों के सहारे ताउम्र चलता है। उत्तर भारत के गांवों में हुक्का परंपरा के रूप में एक से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता है। महिलाओं के लिए यह ज्यादा नुकसानदेह है परंतु मर्दों को ही कौनसा फायदा पहुंचाता है।नशे का कारोबार पता होने से ज्यादा बड़ा है। सरकार समर्थित और सरकारी तंत्र द्वारा समर्थित नशे के कारोबार को जोड़ा जाये तो देश की जीडीपी को मुंह छिपाना पड़ सकता है। फिर भी नशामुक्ति अभियान का शोर बहुत है, नशेड़ियों की बला से।
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