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जैसा बर्तन मिले, उसमें वैसा ढल जाता है

 फ्यूचर लाइन टाईम्स


यूं तो संसार में सब प्रकार के लोग हैं। अच्छे भी, और बुरे भी। जिज्ञासु भी, और अड़ियल भी।
कुछ लोग जो जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं, उनकी दृष्टि सब जगह ऐसी ही होती है कि वे सब लोगों से कुछ न कुछ सीखते रहते हैं। अच्छे लोगों से वे, अच्छी अच्छी बातें सीख लेते हैं। और बुरे लोगों से भी यह बात सीख लेते हैं कि जो बुराई ये लोग कर रहे हैं, ऐसी बुराई के काम हम नहीं करेंगे। 
तो इस प्रकार से जिसको सीखने में रुचि हो, वह केवल चेतन प्राणियों से ही नहीं सीखता, बल्कि जड़ पदार्थों से भी सीखता है।
ऐसे व्यक्ति की दृष्टि बड़ी सूक्ष्म होती है। वह व्यक्ति,  जड़ पदार्थ हों, या चेतन, सब पदार्थों को बहुत गहराई से देखता है। उन पदार्थों के गुण कर्म पर गहराई से विचार मनन करता है। तो एक व्यक्ति ने पानी को देखा। उस पर गहराई से चिंतन किया, कि पानी जड़ पदार्थ है।  इसका एक गुण है। जहां जैसा बर्तन मिले, उसमें वैसा ढल जाता है। अपने आप को वहीं समायोजित कर लेता है। परंतु जब उसे बर्तन से निकाल दिया जाए, और बहने का समय आए, तो फिर वह अपनी गति से चलता है। ढलान की ओर ही बहता है। फिर वह अपना मार्ग स्वयं बना लेता है।
इसी प्रकार से हम सब को भी पानी से यह गुण सीखना चाहिए, कि जहां जैसी परिस्थिति हो, वहां कानून की सीमा में रहते हुए, अपने आप को ढाल लेना चाहिए, कानून के विरुद्ध नहीं। परंतु जब अपनी व्यक्तिगत जीवन की योजनाएं बनानी हों, तब स्वयं अपनी इच्छा और बुद्धि से योजनाएँ और उद्देश्य बनाकर, सब कार्यों का संपादन करना चाहिए। 
उदाहरण- यदि कभी भोजन समय पर मिला, तो ठीक है; नहीं मिला, तो भी ठीक है। दाल सब्जी में नमक कम अधिक हो गया, तो भी ठीक है; और उचित मात्रा में रहा, तो भी ठीक है। इस प्रकार से हर परिस्थिति में अपने आप को समायोजित करें, आप सुखी रहेंगे।
और जब यह निर्णय करना हो, कि मैं जीवन में क्या करना चाहता हूं? मेरी योग्यता गुण कर्म स्वभाव कैसे हैं, मेरी रुचि किस क्षेत्र में है? तो उसके आधार पर फिर अपनी योजनाएँ बनाएँ, और पूरी शक्ति से उस दिशा में कार्य करें, आपका जीवन सफल होगा।


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