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जब यूरोप से भारत के मध्य व्यापार केवल अरब के माध्यम से होता था

 फ्यूचर लाइन टाईम्स


जब यूरोप से भारत के मध्य व्यापार केवल अरब के माध्यम से होता था। उस पर अरबवासियों का प्रभुत्व था। भारतीय मसालों और रेशम आदि की यूरोप में विशेष मांग थी। पुर्तगालवासी वास्को दी गामा समुद्र के रास्ते अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगाते हुए भारत के कप्पाड तट पर 14, मई, 1498 कालीकट, केरल पहुँचा।


केरल के उस प्रदेश में शाही जमोरियन राजपरिवार के राजा समुद्रीन का राज्य था। राजा अपने बड़े से शाही राजमहल में रहता था। गामा अपने साथियों के साथ राजा के दर्शन करने गया। रास्ते में एक हिन्दू मंदिर को चर्च समझ कर गामा और उसके साथी पूजा करने चले गए। वहां स्थित देवीमूर्ति को उन्होंने मरियम की मूर्ति समझा और पुजारियों के मुख से श्री कृष्ण के नाम को सुनकर उसे क्राइस्ट का अपभ्रंश समझा। गामा ने यह सोचा कि लम्बे समय तक यूरोप से दूर रहने के कारण यहाँ के ईसाईयों ने कुछ स्थानीय रीति रिवाज अपना लिए है। इसलिए ये लोग यूरोप के ईसाईयों से कुछ भिन्न मान्यताओं वाले है। गामा की सोच उसके ईसाईयत के प्रति पूर्वाग्रह से हमें परिचित करवाती है।


राजा ने मसालों के व्यापार की अनुमति दे दी। उसका पुर्तगाल वापिस पहुंचने पर भव्य स्वागत हुआ। उसने यूरोप और भारत के मध्य समुद्री रास्ते की खोज जो कर ली थी। आधुनिक लेखक उसे भारत की खोज करने वाला लिखते है। भारत तो पहले से ही समृद्ध व्यापारी देश के रूप में संसार भर में प्रसिद्द था। इसलिए यह कथन यूरोपियन लेखक की पक्षपाती मानसिकता को प्रदर्शित करता है।


पुर्तगाल ने अगली समुद्री यात्रा की तैयारी आरम्भ कर दी। इस बार लड़ाकू तोपों से सुसज्जित 13 जहाजों और 1200 सिपाहियों का बड़ा भारत के लिए निकला। कुछ महीनों की यात्रा के पश्चात यह बेड़ा केरल पहुंचा। कालीकट आते ही पुर्तगालियों ने राजा के समक्ष एक नाजायज़ शर्त रख दी कि राजा केवल पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध रखेंगे। अरबों के साथ किसी भी प्रकार का व्यापार नहीं करेंगे। राजा ने इस शर्त को मानने से इंकार कर दिया। झुंझला कर पुर्तगालियों ने खाड़ी में खड़े एक अरबी जहाज को बंधक बना लिया। अरबी व्यापारियों ने भी पुर्तगालियों की शहर में रुकी टुकड़ी पर हमला बोल दिया। पुर्तगालियों ने बल प्रयोग करते हुए दस अरबी जहाजों को बंधक बना कर उनमें आग लगा दी। इन जहाजों पर काम करने वाले नाविक जिन्दा जल कर मर गए। पुर्तगालियों यहाँ तक नहीं रुके। उन्होंने कालीकट पर अपनी समुद्री तोपों से बमबारी आरम्भ कर दी। यह बमबारी दो दिनों तक चलती रही। कालीकट के राजा को अपना महल छोड़ना पड़ा। यह उनके लिया अत्यंत अपमानजनक था। पुर्तगाली अपने जहाजों को मसालों से भरकर वापिस लौट गए। यह उनका हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व स्थापित करने का पहला अभियान था।


गामा को एक अत्याचारी एवं लालची समुद्री लुटेरे के रूप में अपनी पहचान स्थापित करनी थी। इसलिए वह एक बार फिर से आया। इस बार अगले तीन दिनों तक पुर्तगाली अपने जहाजों से कालीकट पर बमबारी करते रहे। खाड़ी में खड़े सभी जहाजों और उनके 800 नाविकों को पुर्तगाली सेना ने बंधक बना लिया। उन बंधकों की पहले जहाजों पर परेड करवाई गई। फिर उनके नाक-कान, बाहें काटकर उन्हें तड़पा तड़पा कर मारा गया। अंत में उनके क्षत-विक्षत शरीरों को नौकाओं में डालकर तट पर भेज दिया गया। ज़मोरियन राजा ने एक ब्राह्मण संदेशवाहक को उसके दो बेटों और भतीजे के साथ सन्धि के लिए भेजा गया। गामा ने उस संदेशवाहक के अंग भंग कर, अपमानित कर उसे राजा के पास वापिस भेज दिया। और उसके बेटों और भतीजे को फांसी से लटका दिया। पुर्तगालियों का यह अत्याचार केवल कालीकट तक नहीं रुका। वे पश्चिमी घाट के अनेक समुद्री व्यापार केंद्रों पर अपना कहर बरपाते हुए गोवा तक चले गए। गोवा में उन्होंने अपना शासन स्थापित किया। यहाँ उनके अत्याचार की एक अलग दास्तान फ्रांसिस ज़ेवियर नामक एक ईसाई पादरी ने लिखी।


पुर्तग़ालियों के भारत आने और गोवा में जम जाने के बाद ईसाई पादरियों ने भारतीयों का बलात् धर्म-परिवर्तन करना शुरू कर दिया[ii]।
इस अत्याचार को आरम्भ करने वाले ईसाई पादरी का नाम फ्रांसिस ज़ेवियर (Francis Xavier, 7 April 1506–3 December 1552) था। फ्रांसिस ज़ेवियर ने हिन्दुओं को धर्मान्तरित करने का भरसक प्रयास किया मगर उसे आरम्भ में विशेष सफलता नहीं मिली। उसने देखा की उसके और ईसा मसीह की भेड़ों की संख्या में वृद्धि करने के मध्य हिन्दू ब्राह्मण सबसे अधिक बाधक हैं। फ्रांसिस जेविअर के अपने ही शब्दों में ब्रह्माण उसके सबसे बड़े शत्रु थे क्यूंकि वे उन्हें धर्मांतरण करने में सबसे बड़ी रुकावट थे। फ्रांसिस ज़ेवियर ने इस समस्या के समाधान के लिए ईसाई शासन का आश्रय लिया। वाइसराय द्वारा यह आदेश लागू किया गया कि सभी ब्राह्मणों को पुर्तगाली शासन की सीमा से बाहर कर दिया जाये । गोवा में किसी भी स्थान पर नए मंदिर के निर्माण एवं पुराने मंदिर की मरमत करने की कोई इजाज़त नहीं होगी[iii]।
इस पर भी असर न देख अगला आदेश लागू किया गया की जो भी हिन्दू ईसाई शासन के मार्ग में बाधक बनेगा उसकी सम्पति जप्त कर ली जाएगी। इससे भी सफलता न मिलने अधिक कठोरता से अगला आदेश लागू किया गया। राज्य के सभी ब्राह्मणों को धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनने का अथवा देश छोड़ने का फरमान जारी हुआ। इस आदेश के साथ हिन्दुओं विशेष रूप से ब्राह्मणों पर भयंकर अत्याचार आरम्भ हो गये।
हिन्दू पंडित और वैद्य पालकी पर सवारी नहीं कर सकता था। ऐसा करने वालो को दण्डित किया जाता था। यहाँ तक जेल में भी ठूस दिया जाता था[iv]।
हिन्दुओं को ईसाई बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। ईसाई बनने पर राज संरक्षण की प्राप्ति होना एवं हिन्दू बने रहने पर प्रताड़ित होने के चलते हजारों हिन्दू ईसाई बन गए[v]।
हिन्दुओं को विवाह आदि पर उत्सव करने की मनाही करी गई। ईसाई शासन के अत्याचारों के चलते हिन्दू बड़ी संख्या में पलायन के लिए विवश हुए[vi]।
फ्रांसिस ज़ेवियर के शब्दों में परिवर्तित हुए हिन्दुओं को ईसाई बनाते समय उनके पूजा स्थलों को,उनकी मूर्तियों को उन्हें तोड़ने देख उसे अत्यंत प्रसन्नता होती थी। हजारों हिन्दुओं को डरा धमका कर, अनेकों को मार कर, अनेकों को जिन्दा जला कर, अनेकों की संपत्ति जब्त कर, अनेकों को राज्य से निष्कासित कर अथवा जेलों में डाल कर ईसाई मत ने अपने आपको शांतिप्रिय एवं न्यायप्रिय सिद्ध किया[vii]।
हिन्दुओं पर हुए अत्याचार का वर्णन करने भर में लेखनी कांप उठती है। गौरी और गजनी का अत्याचारी इतिहास फिर से सजीव हो उठा था[viii]। विडंबना देखिये की ईसा मसीह के लिए भेड़ों की संख्या में वृद्धि के बदले फ्रांसिस जेविअर को ईसाई समाज ने संत की उपाधि से नवाजा गया। गोवा प्रान्त में एक गिरिजाघर में फ्रांसिस ज़ेवियर की अस्थिया सुरक्षित रखी गई है। हर वर्ष कुछ दिनों के लिए इन्हें दर्शनार्थ रखा जाता है। सबसे बड़ी विडंबना देखिये इनके दर्शन एवं सम्मान करने गोवा के वो ईसाई आते है जिनके पूर्वज कभी हिन्दू थे एवं उन्हें इसी ज़ेवियर ने कभी बलात ईसाई बनाया गया था।
[ii] Alfredo DeMello, “The Portuguese Inquisition in Goa”
[iii] Viceroy António de Noronha issued in 1566, an order applicable to the entire area under Portuguese rule:
“I hereby order that in any area owned by my master, the king, nobody should construct a Hindu temple and such temples already constructed should not be repaired without my permission. If this order is transgressed, such temples shall be, destroyed and the goods in them shall be used to meet expenses of holy deeds, as punishment of such transgression.”
[iv] Priolkar, A. K. The Goa Inquisition. (Bombay, 1961)
[v] Shirodhkar, P. P., Socio-Cultural life in Goa during the 16th century, p. 35
[vi] Shirodhkar, P. P., Socio-Cultural life in Goa during the 16th century, p. 35
[vii] Charles Dellon ,L'Inquisition de Goa (The Inquisition of Goa)


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