फ्यूचर लाइन टाईम्स
इस्लामिक पत्रिका "कान्ति" के नवंबर अंक में स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य का एक लेख पढ़ने को मिला। लेखक के मन में क़ुरान की उन आयतों को लेकर एक शंका थी जिन आयतों में गैर मुस्लिमों को मारने का, क़त्ल करने का विधान बताया गया हैं। लेखक ने कुछ मुस्लिम विद्वानों से इन आयतों को लेकर संपर्क किया था। उन मौलवियों ने यह समाधान बताया कि यह देखा जाना अत्यंत आवश्यक हैं कि आयात किस परिस्थिति में उतरी तभी उसका सही मतलब और मकसद पता चल पायेगा। यह आयतें अत्याचारी, काफिर, मुशिरक लोगों के लिए उतारी गई जो अल्लाह के रसूल से लड़ाई करते और मुल्क में फसाद करने के लिए दौड़े फिरते। सत्य धर्म की राह में रोड़ा डालने वाले ऐसे लोगों के विरुद्ध ही जिहाद का फरमान हैं, क़ुरान में। इस्लाम की सही जानकारी न होने के कारण लोग क़ुरान मजीद कि पवित्र आयतों का मतलब समझ नहीं पाते हैं।
समीक्षा- जो ईश्वरीय ज्ञान के गुणों से अपरिचित होते हैं वे ही ऐसे बहाने बनाते हैं। ईश्वरीय ज्ञान किसी एक देश, एक काल, एक व्यक्ति के लिए नहीं होता अपितु समस्त सृष्टी के लिए उसके आदि से लेकर अंत तक एवं सार्वभौमिक, सर्वकालिक तथा शाश्वत होता हैं। ईश्वरीय ज्ञान एक काल में मान्य एवं एक काल में अमान्य भी नहीं होता अपितु सभी काल में एक सा मानने योग्य होता हैं। ईश्वरीय ज्ञान स्वखंडनीय (self-contradicting) भी नहीं होता हैं। एक और क़ुरान को आप सदा मानवता का सन्देश एवं शांति का पैगाम देने वाला कहने हैं वहीँ दूसरी और जिहाद को केवल एक विशेष काल एवं एक विशेष व्यक्ति के लिए मान्य मानते हैं। क्या यह तथ्य क़ुरान के ईश्वरीय ज्ञान होने की कसौटी पर खरा नहीं उतरता हैं। और अगर जिहाद केवल मुहम्मद साहिब के काल तक ही सीमित रहने के लिए थी तो फिर जिहाद के नाम पर विश्व भर में जो हिंसा, खूनखराबा हो रहा हैं उसका दोष किसे देना चाहिए? क़ुरान में काफिर कौन हैं? जो क़ुरान और अंतिम रसूल पैगम्बर साहिब पर विश्वास नहीं लाता वह काफिर हैं। एक उदहारण लीजिये एक अँधा व्यक्ति गर्मी के महीने में सड़क किनारे बैठकर राहगीरों को पानी पिलाने का कार्य करता हैं। उसके लिए हिन्दू-मुसलमान में कोई भेद नहीं हैं। न वह मंदिर में जाता हैं न मस्जिद में जाता हैं। पर कार्य वह वही करता हैं ईश्वर की सेवा करने का अर्थात ईश्वर के बनाये हुए बन्दों की खिदमत करने का काम। अब इस्लामिक विधान के अनुसार तो वह काफिर हैं क्यूंकि वह क़ुरान और अंतिम रसूल पैगम्बर साहिब पर विश्वास नहीं लाता जबकि वैदिक सिद्धांतों के अनुसार वह श्रेष्ठ व्यक्ति हैं क्यूंकि वह व्यवहार रूप में वेदों की शिक्षा का पालन कर रहा हैं। इस्लाम की काफिर कि इस परिभाषा के अनुसार तो संसार के किसी भी मत-मतान्तर से सम्बंधित मानवता की निष्पक्ष रूप से सेवा करने वाले सभी व्यक्ति मारने योग्य हैं। इस्लाम की काफिर कि इस परिभाषा के अनुसार तो संसार के वो सभी व्यक्ति जिन्होंने कभी क़ुरान अथवा मस्जिद के दर्शन नहीं किये वे भी मारने योग्य हैं। खेद हैं कि अगर ऐसा हैं तो क़ुरान को ईश्वरीय ग्रन्थ मानना गलत हैं।
ईश्वरीय ज्ञान की कसौटी पर केवल और केवल वेद ही खरा उतरता हैं एवं मानने योग्य हैं।
ईश्वरीय ज्ञान के निम्नलिखित गुण हैं :-
१. ईश्वरीय ज्ञान सृष्टी के आरंभ में आना चाहिये न की मानव की उत्पत्ति के हजारों वर्षों के बाद मिलता हैं।
२. ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक में किसी देश का भूगोल और इतिहास नहीं होना चाहिए।
३. ईश्वरीय ज्ञान किसी देश विशेष की भाषा में नहीं आना चाहिए।
४. ईश्वरीय ज्ञान को बार बार बदलने की आवश्यकता या परिवर्तन करने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
५. ईश्वरीय ज्ञान सृष्टी कर्म के विरूद्ध नहीं होना चाहिए।
६. ईश्वरीय ज्ञान विज्ञान विरुद्ध नहीं होना चाहिए और उसमे विभिन्न विद्या का वर्णन होना चाहिए।
७. ईश्वरीय ज्ञान ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव के अनुकूल होना चाहिए।
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