-->

इंटरनेट बंद करने से क्या हासिल : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 



हो सकता है कि इसकी पहुंच रोक देने से दंगाईयों को रोकने में मदद मिलती हो।


परंतु मेरा मानना है कि कलयुग के इस कालखंड में इंटरनेट एक ऐसी युक्ति है जिसने अच्छे अच्छों के सिर झुका दिये हैं। पिता के सामने भी न झुकने का संकल्प उठाने वाले लोग इंटरनेट के समक्ष पूरी श्रद्धा के साथ सिर झुकाए पाए जाते हैं। ऐसे लोग अपने विरुद्ध होने वाले अन्याय के सामने सिर कैसे उठा सकते हैं। तो सरकारें चाहे जो करें, प्रशासन चाहे जो न करे, इंटरनेट पर सारी दुनिया को ज्ञान बांटने वालों का सिर ऊंचा नहीं होता। विद्रोह, बगावत की बातें इंटरनेट से पहले की हैं जैसे नैतिक शिक्षा और हमारे पूर्वजों की कहानियां। नेता स्वयं इंटरनेट पर सिर झुकाए बैठे हैं, उन्हें कार्यकर्ताओं को व्हाट्स ऐप पर धरना प्रदर्शन के लिए संदेश भेजने हैं। कार्यकर्ता इंटरनेट पकड़ कर बैठे हैं कि नेताजी का संदेश कब आ जाये। सड़कों पर उतरने वालों से गाड़ी वालों को खुद बचना होता है क्योंकि इंटरनेट गाड़ी से तेज चलता है। फिर भी शासन-प्रशासन थोड़े से झंझट में झपटकर इंटरनेट के पोल पर जा चढ़ता है। इससे क्या हासिल होता है? क्या लोग आभासी दुनिया के संदेश पाकर सरकार की खिलाफत करने निकलते हैं? मुझे लगता है कि इंटरनेट बंद कर देने से ज्यादा लोग सड़कों पर आते हैं। ऐसे वक्त में यदि इंटरनेट पर दंगों की लाइव कवरेज की जाने लगे तो आश्चर्यजनक रूप से दंगाईयों और तमाशबीन भीड़ में ऋणात्मक कमी आ सकती है। परंतु प्रशासन संभवतः पुराने, अनुपयोगी तथा बच्चों को भी समझाने में विफल हो चुके फॉर्मूले आजमाता है। मसलन लोगों से यह कहना कि यदि तुम दंगा करोगे तो मैं इंटरनेट नहीं चलाऊंगा।" ऐसा कहर ढाने से तो लोग भड़केंगे ही। इंटरनेट एक दुनिया है आभासी ही सही। तुम उनके अधिकार, उनकी जरूरत, उनके अरमान और उनकी अस्मत उजाड़ो तो चलेगा परंतु यदि उनकी दुनिया आभासी ही सही उजाड़ोगे तो कैसे चलेगा। फिर तो दंगा होगा ही। अच्छी तरह समझ लीजिए इंटरनेट में झुंके सिर किसी भी प्रकार उठाए नहीं जा सकते हैं सिवाय इंटरनेट बंद करने के।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ