फ्यूचर लाइन टाईम्स
_श्री प्रेमरामायण_
*_ॐ गुं गुरवे नमः_*
*_नित्यं स्मरामि। तिलकाङि्कत भव्यभालं।_*
*_स्वर्णच्छबिं शिवस्वरुपमहेतु दानिम्।।_*
*_श्री राम नाम अविराम रटन्महान्तं ।_*
*_श्री रामहर्षण प्रभुं प्रेमावतारम् ।।_*
_श्री सद्गुरुदेव भगवान (अनन्त श्री विभूषित स्वामी *श्रीमद् रामहर्षण दास जी महराज*)द्वारा रचित *"श्री प्रेम रामायण"* का क्रमशः अंश जिसकी टीका बहुत ही सुन्दर, लालित्य पूर्ण एवं परिष्कृत- साहित्यिक- शब्दावली में *श्रीमती सिया सहचरी जी (श्रीमती रत्नप्रभा कुलकर्णी जी)* द्वारा की गई है, प्रस्तुत है :-_
*_श्री प्रेमरामायण_*
*_मिथिला काण्ड_*
*_।।दोहा ।।_*
*_सत्य सत्य पुनि सत अहैं,_*
*_प्रभु प्रेरित वर बात।_*
*_सब समर्थ विभु बैठि हिय,_*
*_देत प्रकाश लखात॥२७९॥_*
*_भावार्थ :--_*_प्रभु-प्रेरित यह श्रेष्ठ बात सत्य-सत्य और पुन: परम सत्य है कि सर्वसमर्थ सर्वेश्वर विभु श्रीसीतारामजी सबके हृदय में संस्थित हो सबके हृदय को संप्रकाशित करते हुये दृष्टि-पथ के विषय बन रहे हैं।_
*_।। चौपाई ।।_*
*_अस विचारि सिगरे नरनाहा।_*
*_भरे भाव मन महा उछाहा।।_*
*_सबहिं किये प्रण मुद मन माहीं।_*
*_मातु पिता सिय रघुवर आहीं।।_*
*_भावार्थ :--_*_उपर्युक्त श्रेष्ठ बातों का विचार करते हुये सभी राजा-महाराजा मनही मनश्रद्धा, प्रेम, आदर, अपनत्व इत्यादि सुन्दर भावों से सराबोर होकर परम उत्साह को प्राप्त हो रहे हैं। सभी परम प्रसन्नता से हृदय में इस दृढ़ निश्चयात्मक बात का विचार किये कि यावत जगत के परम पिता श्री रामजी व जगत की जननी श्रीसियाजू ही हैं...._
*_तोरब धनुष बात मन आनत।_*
*_होइहिं पाप परम सत जानत।।_*
*_मातहिं यथा नारि कहि भाषै।_*
*_होय दोष तिमि नरक न राखै।।_*
*_भावार्थ :--_*_...जिस प्रकार कोई अधमाधम जीव अपनी जन्मदात्री माँको अपनी पत्नी संज्ञा से सम्बोधित करे तो, उसे उस महान दोष के कारण नरक भी ठौर नहीं देता उसी प्रकार (राजाओं ने परस्पर विचार किया) यह परम सत्य जानते हुये भी हम धुनष तोड़ने की बात को यदि मन में लाते हैं तो सभी जघन्य पाप के भागी होंगे..._
*_सबहिं भाँति हिय भाव द्रढ़ाई।_*
*_चितवहिं राम जनन सुखदाई।।_*
*_मनहर सुन्दर श्याम सुरूपा।_*
*_निरखहिं इक टक सब नरभूपा।।_*
*_भावार्थ :--_*_..सब प्रकार से राजाओं ने सुविचारों द्वारा अपने हृदय के पवित्र भावों को दृढ़तम किया और वे भक्तों के सुख-सम्प्रदाता भक्तवत्सल श्रीरामजू की अपूर्व रूप-माधुरी को निहारने लगे। अहा हा ! उस समय मनहरण श्यामसुन्दर श्रीरामजी के अनिर्वचनीय सौन्दर्य को सभी नरेन्द्र निर्निमेष देख रहे हैं।_
*_राम लखन कहँ लोचन दोने।_*
*_पीवत भरि भरि सुधा सलोने।।_*
*_भये मगन रस रूप विलोकी।_*
*_जिमिचकोरलखि चन्द्र विशोकी।।_*
*_भावार्थ :--_*_कोटि-कन्दर्प-लावण्य, माधुर्य-रस-घन-सिन्ध श्रीरामजी एवं श्रीलक्ष्मणजी की मधुमय रूप-सुधा का सभी उपस्थित जन-समुदाय, नेत्र-द्रोणों से भर-भर कर पान करने लगे। उन दोनों बंधुओं के रसमय स्वरूप का अवलोकन करते हुये सब ऐसे निमग्न हुये जैसे चन्द्रमा की रूप सुधा का नेत्रोंसे पान कर चकोर शोक रहित हो जाता है...._
_( लिपिकीय त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ )_
*_श्री सीताराम जी महाराज की जय।।_*
*_श्री सद्गुरुदेव भगवान की जय।।_*
_दिनांक 30/12/2019_
*_सुरेश्वर दास_*
*_"श्री सद्गुरु ग्रंथ सेवा ग्रुप"_*
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