फ्यूचर लाइन टाईम्स
हिन्दी पत्रकारिता के शिखर पुरुष पंडित अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने न केवल एक गौरवशाली परम्परा का निर्माण किया, अपितु युवा पत्रकारों की नयी पीढ़ी भी तैयार की। इसीलिए उन्हें 'सम्पादकाचार्य' कहकर आदर और श्रद्धा से याद किया जाता है। वाजपेयी का जन्म दिसम्बर 30, 1880 को कानपुर उ.प्र. में हुआ था। उनके दादा रामचन्द्र अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के मन्त्रिमंडल में धर्माध्यक्ष थे। उनके देहांत के बाद आर्थिक संकट के कारण उनके पिता कन्दर्पनारायण को कोलकाता में गल्ले का व्यापार करना पड़ा। इससे धनलाभ होने पर वे पहले बनारस और फिर लखनऊ आ गये।
पंडित अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने अनेक पत्रों में काम किया। वे अपने विचारों को खुलकर व्यक्त करते थे। इससे शासन उनसे नाराज रहता था पर जनता उन्हें पढ़ने को लालायित रहती थी। इसलिए जिस पत्र के साथ वे जुड़े, उसकी प्रसार संख्या स्वयमेव बढ़ जाती थी। दैनिक 'आज' काशी से लेकर साप्ताहिक 'भारतमित्र' तक इसके प्रबल उदाहरण हैं।
भारतमित्र से पूर्व अनेक दैनिक हिन्दी पत्र निकले पर वे सब अल्पजीवी सिद्ध हुए। 1911 में भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली बदली जा रही थी। परिवर्तन के ऐसे समय में लोगों की समाचारों की भूख दैनिक पत्र ही पूरा कर सकता था। अतः उन्होंने भारतमित्र को दैनिक बनाने का निर्णय लिया। साप्ताहिक भारतमित्र का अन्तिम संस्करण जनवरी 17, 1911 को इस सूचना के साथ प्रकाशित हुआ कि मार्च 1912 से यह दैनिक प्रकाशित होगा। इस बीच दिल्ली तथा अन्य प्रमुख स्थानों पर सम्वाददाता नियुक्त किये गये।
यह पत्र 1935 तक चलता रहा। इसकी लोकप्रियता को देखकर 1914 से 1917 के बीच चार नये पत्र कलकत्ता समाचार, भारत जीवन काशी, अभ्युदय दैनिक प्रयाग और विश्वमित्र दैनिक कोलकाता प्रकाशित हुए। इन पर भारतमित्र और वाजपेयी का स्पष्ट प्रभाव दिखता था।
1919 में वाजपेयी ने भारतमित्र को छोड़ दिया। अत्यधिक परिश्रम से उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया था। फिर उनके शासन विरोधी उग्र लेखों से मालिक, प्रकाशक और मुद्रक पर संकट के बादल मँडराने लगे थे। ऐसी परिस्थिति तब भी आयी थी, जब वे मासिक 'नृसिंह' निकालते थे। वह पत्रिका एक साल में ही बन्द हो गयी पर इस बीच उसने खूब प्रतिष्ठा पायी।
उस समय के श्रेष्ठ पत्रकारों में बाबूराव विष्णु पराड़कर और लक्ष्मण नारायण गर्दे के साथ वाजपेयी का नाम लिया जाता है। भारतमित्र छोड़ने के बाद उन्होंने 'इंडियन नेशनल पब्लिशर्स लिमिटेड' बनाकर 'स्वतन्त्र' नामक पत्र निकाला। वे कांग्रेस महासमिति के सदस्य और कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन की स्वागत समिति के उपाध्यक्ष बने।
वाजपेयी द्वारा लिखित पुस्तकों में हिन्दुओं की राज कल्पना, हिन्दू राज्य शास्त्र, भारतीय शासन पद्धति, हिन्दी पर फारसी का प्रभाव, हिन्दी कौमुदी, अभिनव हिन्दी व्याकरण, हिन्दुस्तानी मुहावरे, अंग्रेजी की वर्तनी और उच्चारण, श्राद्ध प्रकाश, अमरीका और अमरीकन आदि प्रमुख हैं। उनकी पुस्तक 'समाचार पत्र कला' अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में है। 1939 में काशी में हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वे अध्यक्ष निर्वाचित हुए। यहाँ उन्हें 'साहित्य वाचस्पति' की उपाधि दी गयी।
मार्च 21,1968 को लखनऊ में वाजपेयी का देहान्त हुआ।
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