फ्यूचर लाइन टाईम्स
लक्ष्मण सिंह शेखावत का जन्म 1926 में ग्राम टांई जिला झुंझनू, राजस्थान में हुआ था। इनके बड़े भाई श्री नारायण सिंह एक विद्यालय में प्राचार्य तथा संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थेे। वे छात्रों से पितृतुल्य स्नेह करते थे तथा कई छात्रों को अपने साथ रखकर पढ़ाते भी थे। उनमें से कई छात्र आगे चलकर प्रचारक भी बने। कई वर्ष तक उन पर सीकर विभाग कार्यवाह का दायित्व रहा। उनकी प्रेरणा से ही 1944 में लक्ष्मण सिंह जी स्वयंसेवक बने।
1947 में देश स्वाधीन होने को था; पर विभाजन की तलवार भी सिर पर मंडरा रही थी। जाते-जाते अंग्रेजों ने सभी राजे-रजवाड़ों को यह छूट दे दी कि वे अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में मिल सकते हैं। अराजकता के इस माहौल में ही लक्ष्मण सिंह जी ने प्रचारक बनने का निश्चय किया। सीकर, चुरू और श्रीगंगानगर में जिला प्रचारक; उदयपुर और पाली में विभाग प्रचारक; जोधपुर में संभाग प्रचारक तथा 1987 से 92 तक वे राजस्थान के सहप्रांत प्रचारक रहे। इसके बाद दो वर्ष तक उन्होंने जोधपुर प्रांत प्रचारक का दायित्व निभाया।
राजस्थान में बांसवाड़ा तथा डूंगरपुर में पानी की अस्वच्छता के कारण नारू रोग बहुत होता है। वहां जाने में प्रचारक भी संकोच करते थे; पर लक्ष्मण सिंह सहर्ष वहां रहे। इन स्थानों पर कांग्रेस के राजनीतिक प्रभाव के कारण लोग शाखा में आने से डरते थे; पर लक्ष्मण सिंह के मधुर स्वभाव तथा कार्यकुशलता से सब ओर शाखा प्रारम्भ हो गयीं।
लक्ष्मण सिंह की औपचारिक शिक्षा बहुत कम हुई; पर जीवन के अनुभवों से जो ज्ञान और विचार उन्होंने पाये थे, वे उनकी कार्यशैली में सदा दिखाई देते थे। वे हिन्दी की ही तरह अंग्रेजी में भी धाराप्रवाह बोलते थे। नये और पुराने सभी स्वयंसेवकों के साथ आत्मीय संबंधों के कारण वे जहां भी रहे, वहां कार्यकर्ताओं की टोली खड़ी हो जाती थी। आपातकाल में वे उदयपुर में विभाग प्रचारक थे। पुलिस ने उन्हें बहुत ढूंढा पर वे भूमिगत रहकर सत्याग्रह आंदोलन को गति देते रहे तथा अंत तक पुलिस के हाथ नहीं आये।
लक्ष्मण सिंह जी की सबसे बड़ी विशेषता उनका संपर्क का कौशल था। वे हर क्षेत्र के प्रभावी लोगों से संपर्क साध लेते थे। उदयपुर के संघ शिक्षा वर्ग में कबड्डी खेलते हुए एक प्रचारक विद्याधर का गुर्दा फट गया। लक्ष्मण सिंह के संपर्क के कारण वहां के वरिष्ठ चिकित्सक तुरन्त उनके उपचार में जुट गये। इसके साथ ही रक्त देने वालों का भी तांता लगा रहा।
1947-48 में कश्मीर सीमा पर अप्रतिम साहस दिखाने वाले जनरल नाथूसिंह को वे श्री गुरुजी के कार्यक्रम में लाये तथा दोनों की भेंट कराई। अवकाश प्राप्त सेनाधिकारियों की तरह संत-महात्माओं से भी उनका अच्छा संपर्क था। इनमें निम्बार्क सम्प्रदाय के महंत मुरली मनोहर , नाथ सम्प्रदाय के अनेक वरिष्ठ संत तथा भीलवाड़ा के दाता महाराज जैसे सिद्ध संत भी थे।
1977 में राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व में बनी जनता सरकार में कई तरह की पृष्ठभूमि के मंत्री शामिल थे। लक्ष्मण सिंह जी इन सबको भी संघ के निकट लाये। उनके प्रयास से ही मेवाड़ के महाराणा भगवत सिंह तथा गढ़ी के राव इन्द्रजीत सिंह जैसे लोग विश्व हिन्दू परिषद में सक्रिय हुए।
1994 के बाद राजस्थान के संपर्क प्रमुख के नाते वे संघ कार्य के साथ ही राजनीतिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को भी संभालते रहे। वे भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय मंत्री भी रहे। दिसम्बर 29,2000 को हुए भीषण हृदयाघात से उनका प्राणांत हुआ। उनकी कर्मठता और जुझारूपन के प्रसंग आज भी राजस्थान के कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देते हैं।
अभिलेखागार, भारती भवन, जयपुर एवं मोहन जोशी
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