फ्यूचर लाइन टाईम्स
आंध्र प्रदेश के संघ कार्य में अपना जीवन लगाने वाले श्री भीमसेन राव देशपांडे पांडन्ना का जन्म 1951 में ग्राम मोगीली गिद्दा महबूब नगर में हुआ था। इनके बड़े भाई स्वयंसेवक थे। अतः उनके साथ ये भी शाखा जाने लगे। महबूब नगर से सिविल अभियन्ता का तीन वर्षीय डिप्लोमा लेकर 1972 में भीमसेन जी व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए विजयवाड़ा आये। यहां संघ से उनकी निकटता बढ़ी और वे प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग में गये। वर्ग के बाद उन्होंने प्रचारक बनकर संघ कार्य करने का निश्चय किया।
प्रारम्भ में इन्हें श्रीकाकुलम जिले में बोब्बीली नगर का कार्य दिया गया। 1973 और 74 में द्वितीय तथा तृतीय वर्ष का संघ प्रशिक्षण करने के बाद इन्हें श्रीकाकुलम जिले का प्रचारक बनाया गया। आपातकाल में ये 'मीसा' के अन्तर्गत केन्द्रीय कारागार, हैदराबाद में बंद रहे। पांडन्ना की पढ़ने और लिखने में भरपूर रुचि थी। इसके साथ ही उनका हस्तलेख भी बहुत सुंदर था। जेल की गतिविधियों का एक हस्तलिखित पत्रक बनाकर ये गुप्त रूप से बाहर भेजते थे, जहां साइक्लोस्टाइल यंत्र पर उसकी हजारों प्रतियां बनाकर वितरित की जाती थीं।
प्रतिबंध समाप्ति के बाद वे नेल्लूर और अनंतपुर में जिला प्रचारक रहने के बाद 1981 से 89 तक मुस्लिम बहुल पुराने हैदराबाद में प्रचारक रहे। यहीं इनका नाम पांडन्ना (पांडे + अन्ना) प्रचलित हुआ। तेलुगु में अन्ना का अर्थ बड़ा भाई होता है। गायन और योगासन में इनकी विशेष रुचि थी। 1989 में पांडन्ना राजमुन्द्री विभाग प्रचारक तथा 1997 में पूर्व आंध्र प्रांत के प्रचार प्रमुख बनाये गये। करगिल युद्ध के समय पूर्व आंध्र के जो सैनिक सीमा पर लड़े थे, वे उनके गांवों में गये। उनके परिजनों से वार्ता की, चित्र लिये और विजयवाड़ा से प्रकाशित होने वाले 'जागृति' साप्ताहिक में छपवाये।
युद्ध के बाद वहां बलिदान हुए पद्मपणि आचार्य की माता जी का कई स्थानों पर सम्मान करवाया तथा करगिल युद्ध की चित्र प्रदर्शनी लगाई। इस प्रकार उन्होंने सैनिकों और शेष समाज को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उड़ीसा में तूफान आने पर वहां सेवा हेतु आंध्र से गये स्वयंसेवकों के साथ जाकर पांडन्ना ने वहां के चित्र और जानकारी समाचार पत्रों को भेजी।
2000 ई. में जागृति साप्ताहिक का प्रकाशन विजयवाड़ा के बदले हैदराबाद से होने पर उन्हें उसके सम्पादकीय मंडल में शामिल किया गया। पांडन्ना अंग्रेजी व हिन्दी से तेलुगू में बहुत सुंदर अनुवाद करते थे। प्रांत के सभी प्रमुख कार्यक्रमों की जानकारी इनकी कलम से सबको मिलती थी। ये 'सीता' उपनाम से लिखते थे, जो इनकी माता जी का नाम था। श्री गुरुजी जन्मशती के समय 'जन्मशती उत्सव: प्रगति पथ में मील का पत्थर' शीर्षक से उनके 24 लेख छपे। इसमें उन्होंने डा. हेडगेवार जन्मशती कार्यक्रमों द्वारा संघ कार्य में हुई वृद्धि को दर्शाया था। 'श्री गुरुजी दर्शनम्' शीर्षक से भी 11 लेख छपे।
2005 ई. में उन्हें पश्चिम आंध्र में धर्म जागरण का कार्य दिया गया। उन्होंने सन्तों का ग्रामीण क्षेत्र में प्रवास कराया। सैकड़ों हनुमान मंदिर बनवाये तथा बच्चों को हनुमान के लाकेट बंटवाये। इससे धर्मान्तरण पर रोक लगी।
दिसम्बर 25,2009 को मोटरसाइकिल से जाते हुए अचानक उन्होंने सीने में दर्द तथा ठंड का अनुभव किया। इन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां हुए तेज हृदयाघात से उनके प्राण पखेरू उड़ गये। इस प्रकार हंसमुख, परिश्रमी, मित्र तथा सात्विक स्वभाव के एक प्रचारक का जीवन पूर्ण हुआ।
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