फ्यूचर लाइन टाईम्स
दिसम्बर 23, स्व0 पं0 चन्द्रभानु आर्योपदेशक की पुण्य तिथि है। 2014 ई0 में उनका देहान्त हुआ। वे मूलतः एक भजनोपदेशक थे।
आश्विन शुक्ला द्वितीया को 1930ई0 उनका जन्म हुआ। 18 वर्ष के होते-होते घरौंडा चले गए। स्वामी भीष्म से भजनोपदेश और स्वामी रामेश्वरानन्द से वैदिक दर्शन पढकर 1951 से आयु पर्यन्त उन्होंने वैदिक विचारों का पूर्ण समर्पण से प्रचार किया। इन्हीं विचारों के प्रचार के लिये उन्होंने एक भजनोपदेशक होते हुए 1999 में 'शांतिधर्मी' पत्रिका निकालने का साहसिक निर्णय लिया, एक भजनोपदेशक द्वारा 17 वर्ष तक निरन्तर एक पत्रिका का सफल प्रकाशन, सम्पादन आर्यसमाज के इतिहास की पहली घटना है। यह आज भी निरन्तर प्रकाशित हो रही है।
उन्होंने अपने समकालीनों में संभवतः सर्वाधिक भजनों की रचना की है। उन्होंने छोटी बड़ी 45 से अधिक कथाएँ भजनो में लिखी हैं। उनकी एक दर्जन भजनों की पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। अभी उनका 700 से अधिक पृष्ठों का साहित्य अप्रकाशित है। उन्होंने शांतिधर्मी के माध्यम से गद्य लेखन में भी अपने हाथ दिखाए। उनका सम्पादकीय 'शांतिप्रवाह' अत्यंत मार्मिक और प्रेरक होता था।
आज अनन्त जीवन दर्शन को दर्शाती उनकी एक विशेष रचना प्रस्तुत है
लाखों आए चले गए इस आवागमन के चक्कर में।
कल्प और महाकल्प बीत गए जन्म मरण के चक्कर में।।टेक।।
कितनी बार यहाँ जन्म लिया है किस-2 के घर याद नहीं।
कितनी बार हम बने चैपाए दोपाए पर याद नहीं।
कितनी बार आकाश में चढ़कर टोहया सरोवर याद नहीं।
कितनी बार हम नारी बन गए कितनी बार नर याद नहीं।।
कितनी बार मरे बिन आई माया धन के चक्कर में।।1।।
कितनी बार हम साधु बन गए पढ़ लिखकर योगी हो गए।
कितनी बार गृहस्थी होके दुनिया में भोगी हो गए।।
अधिक भोग के कारण ही हम कई बार रोगी होगे।
जब मृत्यु ने आकर घेरे संबंधी सोगी होगे।।
कई बार दुश्मन बन बैठे चाल चलन के चक्कर में।।2।।
कई बार स्थावर बन गए हम जमीं के अन्दर गड़े रहे।
कई बार कृमि बन करके दुर्गन्धी में सड़े रहे।।
कई बार हम माँ के गर्भ में नौ महीने तक पड़े रहे।
शेर बघेरे चीते बनकर पहाड़ के ऊपर खड़े रहे।।
कहीं कोई मारा कहीं आप मरे पेट भरण के चक्कर में।।3।।
कई बार हमने सोचा मन को कर लेंगे वश में।
पर मन तो वश में हुआ नहीं हम ही फंस गए गर्दिश में।।
मन वच कर्म एक हुआ ना जहर भर गया नस नस में।
कहें भीष्म सब उम्र बीत गई देखो आज कसमकस में।।
चन्द्रभान लगा दी जिन्दगी सत्य वचन के चक्कर में।।4।।
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