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दिसम्बर 20 पुण्य-तिथि , ग्राम्य व्यक्तित्व चौधरी बिशनवीर सिंह

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


संघ के काम में तरह-तरह के स्वभाव और पारिवारिक पृष्ठभूमि के लोग प्रचारक बनते हैं। काम करते हुए वे अपने कार्यक्षेत्र के साथ समरस हो जाते हैं, फिर भी पुराने संस्कार और काम की शैली प्रायः बनी रहती है। चौधरी बिशनवीर सिंह ग्राम्य पृष्ठभूमि से आये ऐसे ही एक प्रचारक थे।


बिशनवीर सिंह का जन्म 1954-55 में उ.प्र. के अलीगढ़ जिले के खैर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता चौधरी धर्मवीर सिंह बालियान तथा माता श्रीमती देववती सिंह थीं। उनके परिवार में आढ़त का पुश्तैनी काम होता था। अतः घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। पांच भाई और एक बहिन वाले परिवार में वे तीसरे क्रमांक पर थे। अपने गांव में पढ़ते समय वे स्वयंसेवक बने। 


पश्चिमी उ.प्र. में मुसलमान जनसंख्या भरपूर है। उसमें भी अलीगढ़ जिला मुस्लिम विश्व विद्यालय के कारण मुस्लिम प्रभाव वाला माना जाता है; पर उसी अनुपात में वहां संघ का काम भी बहुत सघन रहा है। अलीगढ़ से बी.काॅम करते समय बिशनवीर जी वहां सायं शाखा में काफी सक्रिय रहे। आगे चलकर उन्होंने हाथरस के बागला डिग्री काॅलिज से एम.काॅम भी किया।


1975-76 में वे अलीगढ़ में पढ़ रहे थे, तभी देश में आपातकाल तथा संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बिशनवीर सिंह जी को भी जेल की यात्रा करने का सुअवसर मिला। उन दिनों कुछ पुलिस अधिकारी कांग्रेसी नेताओं की बहुत चमचागीरी करते थे। वे उनकी निगाहों में चढ़ने के लिए सत्याग्रहियों तथा अन्य राजनीतिक बंदियों को बुरी तरह पीटते थे। बिशनवीर सिंह को भी थाने में बुरी तरह पीटा गया। जब वे जेल में आये, तो वहां उनके साथियों ने उनकी खूब सेवा की, जिससे वे कुछ ही दिन में फिर से पूर्ववत स्वस्थ हो गये।


आपातकाल के बाद वे अपनी शिक्षा पूर्ण कर प्रचारक बने। वे क्रमशः अलीगढ़ जिले में अतरौली और इगलास, मुजफ्फरनगर जिले में बुढ़ाना तहसील तथा फिर रामपुर और आंवला के जिला प्रचारक रहे। पश्चिमी उ.प्र. के गांवों में चौधरी चरणसिंह की जातीय राजनीति के कारण संघ का बहुत विरोध होता रहा है। बिशनवीर सिंह जी स्वयं उसी वर्ग से संबंधित थे। अतः उनके प्रयास से कई शिक्षित और प्रभावी लोग संघ से जुड़ गये। ग्राम्य पृष्ठभूमि के कारण उन्हें नगरों की अपेक्षा गांव में रहना और वहां के काम में ही अधिक आनंद आता था। 


'एकात्मता यज्ञ यात्रा' और 'संस्कृति रक्षा निधि' के देशव्यापी कार्यक्रमों से हुए हिन्दुत्व के नवजागरण के बाद विश्व हिन्दू परिषद के काम में तेजी आयी। अतः कई अनुभवी और युवा कार्यकर्ताओं को वहां भेजा गया। बिशनवीर जी भी उनमें से एक थे। 1988 में उन्हें वि.हि.प. के अन्तर्गत नवगठित 'बजरंग दल' का पहले मेरठ संभाग और फिर पश्चिमी उ.प्र. का काम दिया गया। उन्होंने सघन प्रवास कर सैकड़ों युवकों को बजरंग दल से जोड़ा। 'श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन' में संगठन की योजना के अनुसार छह दिसम्बर, 1992 को बाबरी ढांचे के ध्वंस के समय वे अपने युवा साथियों के साथ अयोध्या में भी उपस्थित रहे।


सरलचित्त होने के कारण वे खरी और सीधी बात कहना पसंद करते थे। एक बार हरिद्वार में समाजवादी पार्टी की रैली थी। बिशनवीर सिंह जी का केन्द्र उन दिनों हरिद्वार ही था। रैली के लिए बड़ी संख्या में लोग बसों में भरकर लाये गये थे। बिशनवीर जी का भतीजा विजय अपने चाचा से मिलने की इच्छा से उस रैली की बस से हरिद्वार आ गया। जब बिशनवीर सिंह जी को यह पता लगा कि किराया बचाने के लालच में वह समाजवादी पार्टी की बस से आया है, तो उन्होंने गुस्से में आकर उसे कार्यालय से बाहर निकाल दिया।


ग्राम्य पृष्ठभूमि के कारण उन्हेें दूध, घी और मिठाई आदि से बहुत प्रेम था। इस सबसे वे मधुमेह तथा रक्त संबंधी कुछ रोगों के शिकार हो गये। दिसम्बर 20,1999 को अपने गांव में ही रक्त में अचानक हुई हीमोग्लोबिन की कमी से उनका शरीरांत हुआ। 


संदर्भ : भतीजे विजय सिंह का पत्र तथा समकालीन प्रचारकों से वार्ता


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