फ्यूचर लाइन टाईम्स
भारत के मुसलमान और ईसाई यहीं के मूल निवासी हैं। मार्गशीर्ष शुक्ल आठ
ग्राम खैराबाद कोटा, राजस्थान में रामगोपाल और रामकन्या बाई के घर में जन्मे श्री मोहन जोशी ने उनकी 'घर वापसी'का कार्य संगठित रूप से आगे बढ़ाया। खेती तथा पुश्तैनी पूजा-पाठ से उनके घर का खर्च चलता था।
कक्षा चार तक गांव में, कक्षा आठ तक रामगंज मंडी में और फिर 1957 में कोटा से बी.ए. कर वे संघ के प्रचारक बने। उनके गांव में प्रह्लाद दत्त वैद्य नामक युवक की ननिहाल थी। वह छुट्टियों में वहां शाखा लगाता था। मोहन जी भी यह देखते थे; पर विधिवत संघ प्रवेश तब हुआ, जब कक्षा पांच में पढ़ते समय चाचा जी उन्हें शाखा ले गये। मोहन जी ने तीनों संघ शिक्षा वर्ग प्रचारक बनने के बाद ही किये। उन्होंने एम.ए. राजनीति शास्त्र और 'साहित्य रत्न' की उपाधि ली तथा रूसी भाषा का अध्ययन भी किया।
प्रचारक के नाते उन्हें सर्वप्रथम झालावाड़ जिले में भेजा गया। फिर 1960 से 1984 तक उनका केन्द्र जयपुर ही रहा। जनसंघ कार्यालय के प्रबंधक, विद्यार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री, आदर्श विद्या मंदिर योजना के उपाध्यक्ष एवं प्रबंधक, विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी हेतु धन संग्रह एवं उसका हिसाब, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय मजदूर संघ आदि के काम में उन्होंने योगदान दिया; पर जयपुर संघ कार्यालय प्रमुख और सायं शाखाओं का काम उनके साथ सदा जुड़ा रहा। विद्यार्थी परिषद में उन्होंने त्रैमासिक 'तरुण शक्ति' तथा पाक्षिक 'छात्र हुंकार' का सम्पादन भी किया। सादा जीवन तथा मधुर वाणी उनकी विशेषता थी।
आपातकाल में मोहन जी ने सत्याग्रही तैयार किये तथा बंदियों के परिजनों से भी सम्पर्क बनाये रखा। 1977 में वे विश्व हिन्दू परिषद, राजस्थान के संगठन मंत्री बनाये गये। यहां उन्होंने ब्यावर में हजारों चौहान मुसलमानों की 'घर वापसी' करायी। इस पर कई पत्रों ने उनके साक्षात्कार तथा लेख छापे। 1984 में वि.हि.परिषद में उनके नेतृत्व में 'परावर्तन विभाग' शुरू हुआ। इसे अब 'धर्म जागरण' कहते हैं। उन्होंने 'भारत जनसेवा संस्थान' बनाकर हजारों लोगों को हिन्दू धर्म में आने को प्रेरित किया। राममंदिर आंदोलन में उन्हें बंगाल, असम और उड़ीसा में शिलापूजन की जिम्मेदारी भी दी गयी।
छात्र जीवन में वे स्थानीय कवि सम्मेलनों में जाते थे; पर प्रचारक बनने पर यह छूट गया। 1966 में उनकी काव्य पुस्तक 'भारत की पुकार' के लिए काका हाथरसी और रक्षामंत्री जगजीवन राम ने भी संदेश भेजे। दीनदयाल जी के देहांत पर उन्होंने व्यथित होकर एक ही रात में 51 कविताएं लिखीं। वे हर दीवाली और वर्ष प्रतिपदा पर एक नयी कविता अपने परिचितों को भेजते थे। चैतन्य प्रवाह तथा जीवन प्रवाह उनके अन्य काव्य संकलन हैं।
उन्होंने सफल जीवन की कहानियां, धर्म प्रसार एक राष्ट्रीय कर्तव्य, रमण गीतामृत, देवराहा बाबा की अमृतवाणी, परावर्तन राष्ट्र रक्षा का महामंत्र, सफेद चोला काला दिल, संसद में धर्मान्तरण पर बहस, धर्मान्तरण राष्ट्रद्रोह का षड्यंत्र, भारत में ईसाई साम्राज्य हेतु पोप एवं अमरीका का षड्यंत्र, चर्च का चक्रव्यूह, ईसाई मायाजाल से सावधान, मुस्लिम आरक्षण राष्ट्रघाती विषवृक्ष, बारूद के ढेर पर हिन्दुस्थान, उतिष्ठित जाग्रत, हिन्दुओं के सीने पर कानूनी राइफल, जागो जगाओ देश बचाओ, पाप का गढ़ और बच्चों के शिकारी, वेटिकन के भेड़िये, विजयी भव, स्वतंत्र भारत के शूरवीर सेनानी, करगिल के वीरों की गाथा, उपनिषद कथामृत, महाभारत की दिव्य आत्माएं आदि का लेखन, संकलन और सम्पादन किया है। पाक्षिक 'भारत जागरण बुलेटिन' भी वे चलाते थे।
2011 में एर्नाकुलम से दिल्ली आते हुए रेलगाड़ी में ही उन्हें पक्षाघात हुआ। तबसे उनका प्रवास बंद हो गया। फिर भी एक सहायक के साथ वे दिल्ली में परिषद कार्यालय की शाखा पर आते रहेे। लम्बी बीमारी के बाद चार दिसम्बर, 2017 को ब्रह्ममुहूर्त में उनका निधन हुआ।
संदर्भ : वि.हि.प. कार्यालय
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