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दिसम्बर 12 जन्म दिवस दत्तात्रेय गंगाधर कस्तूरे, भैया जी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। इसमें विभिन्न आयु, वर्ग, आर्थिक स्थिति, स्वभाव तथा काम करने वाले कार्यकर्ता हैं। यहां गृहत्यागी प्रचारक हैं, तो गृहस्थ कार्यकर्ता भी; पर हिन्दुत्वनिष्ठा के कारण सब एक दूसरे से अत्यधिक प्रेम करते हुए संघ की योजनानुसार काम करते हैं। 


ऐसे ही एक प्रचारक थे दत्तात्रेय गंगाधर कस्तूरे, जो भैया जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने 40 वर्ष तक दिन में केवल एक बार दलिया खाकर काम किया, इस कारण कई परिवारों में उन्हें 'दलिया वाले बाबा' कहा जाता था। 


उनका जन्म दिसम्बर 12,1921 दत्त जयन्ती को महाकाल की नगरी उज्जैन म.प्र. में महाकालेश्वर मंदिर के पास कामले के बाड़े में श्री गंगाधर राव और श्रीमती बारुबाई के घर में हुआ था। दत्त जयन्ती पर जन्म के कारण इनका नाम दत्तात्रेय रखा गया। निर्धनता के कारण वे अपने छोटे भाई के साथ नगर निगम के बिजली के खंभे के नीचे बैठकर पढ़ते थे। 


परिवार में अध्यात्मिक वातावरण था। भैया जी के छोटे भाई विष्णु कस्तूरे पीली कोठी, चित्रकूट के परमहंस स्वामी अखंडानंद जी महाराज के शिष्य बने और संन्यास लेकर स्वामी प्रकाशानंद कहलाये। 1933 में माता जी एवं 1935 में पिताजी के देहांत के बाद भैया जी ने रामनवमी के दिन घर छोड़ दिया।


1936 में भैया जी का सम्पर्क उज्जैन में कार्यरत प्रचारक दिगम्बर राव तिजारे के माध्यम से संघ से हुआ और फिर वे तन-मन से संघ को समर्पित हो गये। अपना अधिकांश समय संघ कार्य हेतु लगाते हुए उन्होंने 1942 में एम.ए. तक की शिक्षा पूर्ण की। उन दिनों 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' आंदोलन का जोर था। भैया जी उसमें सहभागी हुए तथा जेल से आकर संघ के प्रचारक बन गये। हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी और संस्कृत भाषाओं के वे अच्छे ज्ञाता थे।


अध्यात्म प्रेमी होने के कारण संघ कार्य के साथ ही उनका साधना का क्रम भी चलता रहता था। प्रचारक रहते हुए ही उन्होंने बाबा सीताराम ओंकारनाथ जी से दीक्षा लेकर नर्मदा तट पर 24 लाख जप करते हुए गायत्री पुरश्चरण की अखंड साधना पूर्ण की। उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण बस या रेल से प्रवास करना कठिन था। अतः भैया जी शाखाओं पर प्रवास के लिए एक दिन में 60-70 कि.मी. तक साइकिल चला लेते थे। उनका कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से मध्य प्रदेश ही रहा।


1975 में आपातकाल एवं संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इससे पूर्व ही वे 'विश्व हिन्दू परिषद' के कार्य हेतु दिल्ली आ गये थे। प्रतिबन्ध के विरोध में वे जेल गये। प्रतिबन्ध के बाद उन्होंने प्रान्त संगठन मंत्री, अर्चक प्रमुख आदि दायित्वों पर काम किया। विश्व हिन्दू परिषद के मुखपत्र 'हिन्दू विश्व' का प्रकाशन जब दिल्ली की बजाय प्रयाग से होने लगा, तो दिल्ली से 'हिन्दू चेतना' पत्रिका निकाली गयी और भैया जी को उसकी जिम्मेदारी दी गयी। अपनी सामग्री की विविधता के कारण पत्रिका शीघ्र ही लोकप्रिय हो गयी।


सम्पादक एवं प्रकाशक होने के बाद भी वे पत्रिका का छोटा-बड़ा हर काम करने को तत्पर रहते थे। पत्रिका की सामग्री के साथ ही वह समय से छपे और डाक में चली जाए, इस पर उनका विशेष आग्रह रहता था। अत्यन्त विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने इस जिम्मेदारी को निभाया। 1990-91 में भीषण हृदयाघात के कारण उनके हृदय की शल्य क्रिया की गयी। इसके बाद उन्होंने प्राणायाम, ध्यान एवं योगाभ्यास द्वारा अपने स्वास्थ्य को नियन्त्रण में रखा। 


दो जनवरी, 2006 को पत्रिका डाक से पाठकों को भेजी जा रही थी। उसी दिन उन्होंने अपने पाठकों से सदा के लिए विदा ले ली।


संदर्भ: हिन्दू चेतना जनवरी 16,2009


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