फ्यूचर लाइन टाईम्स
सभ्य समाज में किसी स्थान, मार्ग, स्मारक, शहर आदि का नामकरण ऐसे नामों से किया जाता है। जो इतिहास में बड़ी विभूति अथवा महान कार्यावेता हो। जिनसे हमें प्रेरणा मिले। सम्पूर्ण विश्व में इस नियम का पालन होता हैं। मगर हमारे भारत देश में इस नियम के विपरीत विदेशी आक्रांताओं जैसे तैमूर, बाबर अथवा अत्याचारियों जैसे अकबर , औरंगज़ेब आदि के नाम पर अनेक स्थलों का नामकरण किया गया। यह कार्य अंग्रेजी राज में ही नहीं अपितु 1947 के बाद विशेष रूप से देश के शासक वर्ग ने किया। इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से हिन्दू समाज को मानसिक रूप से प्रताड़ित करना था। उनकी नस्लों को यह जताना था कि तुम पर अत्याचार करने वाले महान थे। तुम्हारे पूर्वजों पर हमला करने वाले सही थे। यह मानसिक अत्याचार एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत किया गया। यहाँ तक की हमारे पाठयक्रम में भी इनके अत्याचारों को कभी शामिल नहीं किया गया उल्ट गौरी और गजनी को महान लिखा गया। इस लेख के माध्यम से हम बताएँगे कि कैसे बाबर अत्याचारी आक्रांता था। वह श्रेय का नहीं घृणा का पात्र था। उसका नाम स्थलों के नामकरण के नहीं अपितु उसके अत्याचारी पुरुष के रूप में वर्णित होना चाहिए।
भारत में इस्लामी आक्रमणकर्ताओं के मुगल साम्राज्य के संस्थापक, बाबर, ने 'मुजाहिद' की पदवी उस समय प्राप्त की जब उसने उत्तरपश्चिम सीमा प्रान्त के, एक छोटे से राज्य, बिजनौर, में अपनी भारतविजय के प्रारम्भिक काल 1519 में आक्रमण किया। उसने अपनी जीवनी, बाबरनामा, में इस घटना का बड़े आनन्द व हर्षोल्लास, के साथ वर्णन किया था।
हिन्दू शवों के सिरों से मुस्लिम आक्रान्ता बाबर द्वारा बनवाई गई मीनारें
'चूंकि बिजौरीवासी इस्लाम के शत्रु व विद्रोही थे, और चूंकि उनके मध्य विधर्मी और विरोधी रीति रिवाज व परम्परायें प्रचलित थीं, उनका सामान्य, यानी कि सर्व समावेशी, नर संहार किया गया। उनकी पत्नियों और बच्चों को बन्दी बना लिया गया। एक अनुमान के अनुसार तीन हजार व्यक्ति मौत के घाट उतारे गये, नर्क पहुँचाये गये। दुर्ग को विजयकर, हमने उसमें प्रवेश किया और उसका निरीक्षण किया। दीवालों के सहारे, घरों में, गलियों में, गलियारों में, अनगित संखया में हिन्दू मृतक पड़े हुए थे। आने वाले व जाने वाली सभी को शवों के ऊपर से ही जाना पड़ा था...मुहर्रम के नौवें दिन मैंने आदेश दिया कि मैदान में हिन्दू मृतक शिरो की एक मीनार बनाई जाए।'
बाबरनाम अनु. ए. एस. बैवरिज, नई दिल्ली पुनः छापी १९७९, पृष्ठ ३७०-७१
हिन्दू व्यक्तियों के शिरों से शिकार खेलने की अपने पूर्वज तिमूर की अभिरुचि में बाबर भागीदार था। दोनों हीगाज़ियों को, कटे हुए हिन्दू शिरों की मीनारें खड़ी करने की एक असाधारण लगन थी।
बाबर गाज़ी हो गया
जवाहर लाल नेहरू से लेकर जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय एवम् अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सैक्यूलरवादियों तक सभी ने बाबर को एक दक्ष, चतुर, भावुक कवि चित्रित किया है। हमें लगा कि बाबर के काव्य का एक नमूना प्रस्तुत कर देना उपयोगी और आनन्द कर होगा। निम्नलिखित, उद्धत, काव्य से पूर्णतः स्पष्ट है, उसका अर्थ करना निरर्थक है, क्योंकि उसका पाठ स्वयं ही सर्वाधिक अर्थपूर्ण व स्पष्ट है। यथा-
'इस्लाम के निमित्त मैं जंगलों में भटका।
मूर्ति पूजकों व हिन्दुओं के विरुद्ध प्रस्तुत हुआ।
शहीद की मृत्यु स्वयं पाने का निश्चय किया,
अल्लाह का धन्यवाद कि मैं गाजी हो गया।'
उसी पुस्तक में, पृष्ठ-५७४-७५
बाबरी मस्जिद
१५२८-२९ में, बाबर के आदेशानुसार, मुगल सैन्य संचालक, मीर बकी ने, भगवान राम की जन्मभूमि की स्मृति में बने, अयोध्या मन्दिर, का विध्वंस कर दिया और उसके स्थान पर एक मस्जिद बनवा दी।'
उसी पुस्तक में, पृष्ठ ६५६, और मुस्लिम स्टेट इन इण्डिया, के. एस. लाल
बाबरी मस्जिद पर एक शिला लेख : 'शहंशाह बाबर के आदेशानुसार, उदार हदय मीरबकी ने फरिश्तों के उतरने का यह स्थान बनवाया।'
गुरु नानक देव द्वारा बाबर की निन्दा
भारत के महानतम सन्तों में से एक महान सन्त गुरु नानक देव बाबर के समकालीन ऋषि थे। हिन्दुओं की अवर्णनीय यातनाओं का ध्यान कर वे गुरु नानक देव इतने द्रवित हुए कि उन्होंने संसार के उत्पत्ति कर्ता, परमपिता परमेश्वर से, हिन्दुओं की घोर पीड़ा से द्रवित हो, प्रश्न किया कि हे प्रभो! आप ऐसे नर संहार, ऐसी यातनाओं और ऐसी पीड़ाओं को किस प्रकार सहन कर पाते हैं। उन्होंने कहा- 'ईश्वर ने अपने पंखों के नीचे खुरासन लगा रखा है यानी कि समधिस्थ हो गये हैं और भारत को बाबर के अत्याचारों के लिए खुला छोड़ दिया है।'
'हे जीवन दाता! आप अपने ऊपर कोई कैसा भी दोष नहीं लपेटते अर्थात् सदैव ही निर्लिप्त रहे आते हो। क्या यह मृत्यु ही थी जो मुगल के रूप् में हमसे युद्ध करने आई? जब इतना भीषण नर संहार हो रहा था, इतनी भीषण कराहें निकल रही थीं, क्या तुम्हें पीड़ा नहीं हुई?
गुरु नानक, पृष्ठ १२५, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार
कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया नामक ग्रन्थ में आचार्य जदुनाथ सरकार ने लिखा था- 'अपने समकालीन मुसलमानों की, गुरुनानक ने भर्त्सना की थी और उन्हें नीच, पतित व पथ भृष्ट कहा था।'
खण्ड ४, अध्याय VIII, पृष्ठ २४४
यह कुछ प्रमाण हमने पुस्तक "भारतीय मुसलमानों के पूर्वज मुसलमान कैसे बने", प्रकाशक- हिन्दू राइटर फोरम से लिए हैं। इतिहास के अनेक निष्पक्ष पुस्तकों से बाबर के अत्याचारों को जानकर हम यह कैसे सहन करें कि बाबर के नाम से हमारे देश के स्थलों का नामकरण हो। इसलिए अत्याचारीयों के नाम से देश के सभी स्थलों का नामकरण पुन: होना चाहिए।
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