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धर्मके आधार पर ही सबकी स्थिति है

फ्यूचर लाइन टाईम्स


धर्म की गति बड़ी गहन है कौन-सा कर्म धर्म है और कौन-सा अधर्म इसका निर्णय सामान्य बुद्धि नहीं कर सकती। धर्म और अधर्मका तत्त्व तो स्वयं भगवान् जानते हैं अथवा भगवान का साक्षात्कार करने वाले महर्षि लोग जानते हैं। भगवान  का वह रूप जिसके द्वारा प्राणियों के हृदय में स्थित होकर वे जगत को, प्राणियों को धारण करते हैं, धर्म नाम से कहा गया है। धर्म के आधार पर ही सबकी स्थिति है, धर्म में ही सब कुछ प्रतिष्ठित है, इसलिये धर्म को ही परम तत्त्व कहते हैं।


महात्मा विदुर


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