फ्यूचर लाइन टाईम्स
आप केवल देह हैं, इसमें ही सारी भ्रांतियां छिपी हैं। इस तादात्म्य को छोड़िये। आप देह में हैं परन्तु.. देह नहीं हैं।
देह मंदिर है, पूजा-स्थल है, उतना ही पवित्र जितना केदारनाथ या काशी। उससे भी ज्यादा पवित्र। क्योंकि केदारनाथ तो फिर भी पत्थर है । देह के भीतर तो स्वयं परमात्मा विराजमान है। लेकिन याद रखें कि वह जो भीतर बैठा है वह देह के साथ एक नहीं है , वह देह से बहुत भिन्न है, विलक्षण है, वही मनुष्य जीवन का साध्य है। अगर यह बात समझ में आ जाये तो फिर न कोई जवानी है , न बुढापा है , फिर आप शाश्वत हैं। इस शाश्वत के प्रति सजग होना है।
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