फ्यूचर लाइन टाईम्स
कैब (सीएबी) यानी अब सीएए पर संसद में बहस सुन रहा था, दोनों पक्ष सरकार और प्रतिपक्ष जितनी सरल शब्दों में इसकी व्याख्या कर रहे थे असल में मामला उतना सीधा है नहीं।
असल बात दोनों पक्षों ने छिपा ली। सरकार ने अपना दूरगामी लक्ष्य छिपा लिया और विपक्ष ने अपनी हार की तिलमिलाहट छिपाने के लिए संविधान की आड़ ले ली। कुछ बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं।
क्या हैं इसके दूरगामी परिणाम : सीएए के माध्यम से सरकार ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के वृषण भाग (अंडकोष) पर ऐसा घुटना मारा है जिससे ये तिलमिला तो गए हैं लेकिन अपना दर्द नहीं बयां कर पा रहे हैं। सरकार ने ये बिल लाकर इनका नाम लिए बिना पूरी दुनिया को बता दिया कि इन देशों में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़ऩ हो रहा है। बिल पास होते ही बांग्लादेश को दुनिया के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए कहना पड़ा कि वह अपने सभी नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है। उसने स्वीकार भी किया कि उसके यहां अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हुआ है। कश्मीर में उत्पीड़न का आरोप लगाने वाले पाकिस्तान ने ऊल-जुलूल बयान दिया लेकिन यूएन की रिपोर्ट ने उसकी पोल खोल दी इस बिल के आने से पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हो रहा था वह अब एक दस्तावेजी रिकॉर्ड बन गया है, जुबानी जमा खर्च नहीं है। भारत में जितने लोगों को यहां नागरिकता दी जाएगी ये दोनों देश उतने ही एक्सपोज होंगे। इस बिल के पास होने के बाद ही बांग्लादेश ने रोहिंग्याओं को वापस लेने के लिए म्यांमार पर दबाव बना शुरू कर दिया है। इस बिल के आने के बाद भारत में रह रहे तमाम अल्पसंख्यक पीड़ित खुलकर बता सकेंगे कि वे किस देश से आए हैं, इससे इन देशों की और पोल खुलेगी। इसके चलते इनको अपने यहां उन कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा, जिनका उपयोग ये दोनों देश भारत को ब्लैकमेल करने के लिए करते हैं।
विपक्ष ने क्या छिपाया अपना दर्द : विपक्ष को पता है कि इसका भारत के नागरिकों पर असर नहीं पड़ने वाला लेकिन 370, राम मंदिर, तीन तलाक पर प्रतिरोध न होना, सबकुछ शांति से निपट जाने पर विपक्ष काफी चकित था, उसे इस तरह का निष्कंटक राज पसंद नहीं आ रहा था। इसलिए उसने एनआरसी का डर दिखाकर लोगों को भड़काया। लेकिन देश में इतनी ज्यादा हिंसा हो गई, इससे विपक्ष का ये पांसा भी उल्टा ही पड़ता दिखाई दे रहा है। अमित शाह का ये कहना कि रोहिंग्या को हम रहने नहीं देंगे, एनआरसी तो हम लेकर ही आएंगे। भारत में पिछले 70 साल में इतनी स्पष्टता से संसद में किसी नेता ने भाषण नहीं दिया था। इस भाषण से देश के बहुत से स्वयंभू लोगों ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया, उनकी अकड़ को ठेस पहुंची। मौलाना, पर्सनल लॉ बोर्ड, फतवेबाजों के फफोले भी इस बिल के माध्यम से फूट पड़े जो पिछले कई महीनों से इस सरकार की कारगुजारियों से कलेजे में पड़े हुए थे। इन्हें अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गया।
अब आगे क्या : मौलानाओं, धर्म के ठेकेदारों, पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी अवैध संस्थाओं को डर है कि ये सरकार कॉमन सिविल कोड, जनसंख्या नियंत्रण कानून, एनआरसी पर बहुत तेजी से काम कर सकती है, इसलिए इसका एक ही उपाय है हिंसा। हिंसा फैलाकर देश-दुनिया का ध्यान खींचो, सरकार अपने आप कदम पीछे खींच लेगी। सरकार इसको लिटमस टेस्ट भी मान सकती है क्योंकि 370, राम मंदिर, तीन तलाक पर जिस तरह से शांति रही थी, उससे सरकार मुगालते में आ गई थी, अब सरकार आगे की चीजों को करने से पहले अपनी जरूरी तैयारी करके रखेगी। अब हिन्दू बोलते ही चीखने, हिंसा करने वालों को शायद समझ में आ जाए कि एक तो चीखने का कोई फायदा नहीं, दूसरा आप लोग एक्सपोज हो चुके हो और तीसरा इस देश के नागरिक हिन्दू भी हैं। उनके लिए भी कुछ करने की जिम्मेदारी सरकार की है, सिर्फ एक ही समुदाय का तुष्टिकरण नहीं किया जा सकता।इस सख्ती का तात्कालिक फायदा ये होता दिख रहा है कि फिलहाल बाकी देशों से घुसपैठिए थोड़ा ठिठकेंगे, जो खिसक सकते हैं वे तुरंत यहां से खिसकेंगे। भारत को सराय समझने वाले यहां आने से पहले दस बार सोचेंगे। पड़ोसी सरकारें भी शायद हमारी सरकारों को गंभीरता से लेने लगेंगी, क्योंकि अब चीजें रिकॉर्ड पर आएंगी, हवाई किले बनाने के दिन लद गए।
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