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बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब  मुस्कुरा देता हूँ, आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हू।

फ्यूचर लाइन टाईम्स


मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,_
_आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।_


_लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,_
_मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।_


_छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,_ 
_जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।_


_मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,_
_छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।_


_कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,_
_क्योंकि आखिरी ठिकाना मेरा मिटटी का घर जानता हूँ।


_बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब  मुस्कुरा देता हूँ,_
_आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हू।...


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