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अथर्ववेद के पृथिवी सूक्त के आधार पर वेद में राष्ट्रभक्ति      

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है | इस कारण विश्व में जितने भी प्रकार का सत्य ज्ञान है , उस सब के दर्शन वेद में हमें मिलते हैं | इन सब प्रकार के ज्ञान - विज्ञान में देशभक्ति भी एक प्रमुख ज्ञान है | हमारे इस लेख का विषय भी देशभक्ति अथवा राष्ट्र - प्रेम ही है | जो व्यक्ति अपने देश से प्रेम नहीं करता , इसकी वृद्धि नहीं चाहता वह मनुष्य न होकर गन्दी नाली के कीड़े के समान है | अत: आओ हम यजुर्वेद के पृथिवी सूक्त के आधार पर देश प्रेम को समझें | यजुर्वेद में इस सम्बन्ध में इस प्रकार प्रकाश डाला गया है :-
              सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञ: पृथिवीं धारयन्ति |
              सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं लोकं पृथिवी न: कृणोतु || अथर्ववेद १२.१.१ ||
       मन्त्र का भाव है कि हम इस में बताई शक्तियों पर चलते हुए आगे बढ़ें तो निश्चय ही हमारा राष्ट्र निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर रहेगा | यह सात शक्तियां अवलोकनीय हैं :-
सात महाशक्तियां 
     किसी भी राष्ट्र के नव निर्माण के लिए उस देश के निवासियों में यह सात गुण वेद ने आवश्यक माने हैं | वेद कहता है कि देश की प्रगति केवल और केवल तब ही संभव है जब देशवासियों में :-
१. महान् सत्य
     महान् सत्य नामक गुण का होना आवश्यक है | जिस देश में नागरिक असत्य पर चलेंगे , वहां लड़ाई – झगडा, कलह – क्लेष बना रहेगा क्योंकि असत्य आचरण होने के कारण कोई भी किसी दूसरे की बातों पर, योजनाओं पर , लेन – देन पर , शिक्षा - दीक्षा पर विशवास ही नहीं करेगा यह स्थिति हम आज के नेताओं में खूब देख सकते हैं , जिन की अविश्वसनीय धारणा के ही कारण देश में प्रतिदिन कलह बढती ही जा रही है और देश की स्वतंत्रता पर भी खतरा छाने लगा है |इसलिए 


                                      २ 
मन्त्र उपदेश करता है कि हे देश की उन्नति चाहने वाले नागरिको तथा देश के नेताओं ! सदा सत्य पर आचरण करो | यह ही उन्नति का श्रेष्ठ मार्ग है | इससे ही यह राष्ट्र आगे बढ़ पायेगा |
२. सत्य ज्ञान
     सृष्टि के आरम्भ में चार उत्तम ऋषियों के माध्यम से मानव मात्र के कल्याण के लिए परमपिता परमात्मा ने हमें वेद का उत्कृष्ट ज्ञान दिया | ईश्वरीय ज्ञान होने के कारण केवल यह वेद का ज्ञान ही सत्य ज्ञान है , अन्य जितने भी ज्ञान हैं , यदि वह इस ज्ञान से मेल खाते हैं तो सत्य हैं , अन्यथा गलत हैं, असत्य हैं | मन्त्र कहता है कि हमें सत्य ज्ञान का ही आचरण करना है | सत्य ज्ञान पर चलते हुए ही हम उन्नति करेंगे | हमारी उन्नति में ही राष्ट्र की उन्नति निहित है | अत: वेद का नित्य स्वाध्याय हमारे लिए अआवश्यक है |
३. दृढ संकल्प 
     संकल्पहीन व्यक्ति की स्थिति सदा मुरादाबादी लोटे की भाँति डांवांडोल रहती है | उस को जो भी कोई व्यक्ति कुछ भी सुझाव देता है , मार्गदर्शन करता है , वह उसके अनुसार ही कार्य करने लगता है | इससे कभी कोई आदेश निकलता है और कभी कोई | इससे देश में अव्यवस्था फ़ैल जाती है क्योंकि एक दिन एक आदेश आता है और दूसरे दिन उस आदेश के उल्ट कुछ और आदेश आ जाता है | इसलिए न केवल जनता अपितु राज नेताओं को भी अपने संकल्प पर कठोर व्रती होना आवश्यक हो जाता है | जब वह खूब सोच - विचार कर दृढ संकल्प हो कोई निर्णय लेंगे तो उसके कार्यान्वयन में कोई कठिनाई नहीं आवेगी |
४. कर्तव्य परायणता 
     राष्ट्र के नवनिर्माण में कर्तव्य परयाणता का विशेष योग होता है | एक कर्तव्यहीन नागरिक अथवा नेता पूरे राष्ट्र को नरक की और धकेलने का कारण बनता है किन्तु कर्तव्यशील नागरिक अपने कर्तव्य को भली प्रकार जानता है और सदा इन्हें सम्मुख रखते हुए ही अपना प्रत्येक कार्य व्यवहार करता है | इससे देश निरंतर उन्नति पथ का पथिक बना रहता है | 
५. तपस्वी वृत्ति
        तप और स्वार्थ जीवन के दो पहलू हैं | जहाँ स्वार्थ देश में कटुता पैदा कर विनाश की और ले जाता है , वहां तपस्वी स्वभाव देश को उन्नति के मार्ग पर बनाए रखता है क्योंकि तपस्वी व्यक्ति को खाने , पहनने या फैशन की आवश्यकता नहीं होती | वह तो इस प्रकार के व्यय को अपव्यय मानता है | इससे देश की विपुल धन - सम्पत्ति बच जाती है , जिसे देश के नव-निर्माण के कार्यों में लगाया जा सकता है |
६. ज्ञान - विज्ञान की विद्वत्ता 
     अज्ञानी या अविद्वान् व्यक्ति अपनी मूर्खता के कारण बहुत से गलत कार्य कर जाता है , जिनका उसे ज्ञान ही नहीं होता | इससे न चाहते हुए भी देश का अत्यधिक अहित हो जाता है | इस लिए देश में ज्ञान – विज्ञान का खूब प्रचार होना आवश्यक है ताकि जो भी कार्य किया जावे उसका आरम्भ करने से पूर्व यह ज्ञानी लोग विचार विमर्श कर इस के गुण – दोष को जान सकें और जो उत्तम है , उसे ही व्यवहार में लावें |
७. सर्व कल्याण की भावना और परोपकार की वृत्ति 
     जब किसी भी राष्ट्र के प्रत्येक प्राणी में सर्वमंगल की वृत्ति होगी , वह सब के कल्याण की सदा इच्छा करेगा तो निश्चय ही उसके अन्दर दूसरों की सहायता की भावना बलवती होगी | इस दूसरों की सहायता को ही परोपकर कहते हैं | जब मानव में परोपकार की वृत्ति आ जाती है तो वह स्वार्थ की और कभी देखता ही नहीं | इस प्रकार से की गई सेवा को निष्काम सेवा भी कहते हैं | जब मानव निष्काम सेवा करने लगता है तो वह अपनी उन्नति की चिंता के स्थान पर दूसरों की उन्नति के लिए कार्य करता है | इसे ही सर्वमंगल , सर्वकल्याण की भावना कहते हैं | जब वह इस भावना से काम करता है तो इसे परोपकार कहते हैं | जब नागरिक परोपकारी है तो राष्ट्र को उन्नत होना निश्चित है हो जाता है |
     जब देश के नागरिकों में यह सात महाशक्तियां आ जाती है , नागरिक इन महाशक्तियों के गुण – दोष समझने लगते हैं तथा इनके गुणों के अनुरुप ही कार्य करते हैं तो राष्ट्र इतनी तीव्र गति से आगे बढ़ता है कि विश्व के अन्य देशों में इस देश का यश और कीर्ति फ़ैल जाती है और यह राष्ट्र बड़े आदर की दृष्टि से देखा जाता है |
मातृभूमि हमें विस्तृत प्रकाश दे 
     मन्त्र के इस दुूसरे भाग में बताया गया है कि हमारी मातृभूमि हमारे भूतकाल के उत्तम अनुभवों को संभालती है और हमारे इन कार्यों के आधार पर हमारे भविष्य को बनाने का कार्य करती है |


इसलिए मन्त्र उपदेश करता है कि हमारी मातृभूमि हमें अत्यधिक विस्तार वाला स्थान हमारे हितसाधन के लिए दे और यह हित प्रकाश के बिना संभव नहीं इसलिए हमें ज्ञान का प्रकाश भी दे | इस तथ्य को समझने के लिए हम एक बार फिर सात महाशक्तियों को देखते हैं | यह शक्तियाँ जिस राष्ट्र के नागरिकों के जीवन का अंग बन जाती हैं , वह राष्ट्र सदा स्थायी रूप में रहता है , उन्नति पथ पर आगे बढ़ता चला जाता है | इसमें सदा खुशहाली ही निवास करती है | किसी को कभी भी कोई दु:ख – कष्ट – क्लेष नहीं होता |
हमारा संकल्प 
     मन्त्र के इस भाग में नागरिकों के लिए एक संकल्प लेने को भी कहा गया है | नागरिक संकल्प लेते हुए, प्रतिज्ञा करते हुए कहते हैं कि हे मातृभूमि ! हम इस देश के नागरिक ऊपर दिए सातों महाशक्तियों को धारण करने का संकल्प लेते हैं कि हम, तेरे लिए इन सातों गुणों से संपन्न होकर तेरी रक्षा करने के लिए सदा तैयार हैं | तेरे अन्दर भूतकाल के पदार्थ गड़े हुए हैं , वर्त्तमान का सब कुछ तेरे पास उपलब्ध है तथा भविष्य बनाने के लिए भी तु नित्य उत्सर्जन कर रही है | तु इन तीनों कालों के सब के सब पदार्थों का उत्तम प्रकार से पौषण करने में समर्थ है | सातों गुणों को धारण करने के कारण हम इन पौषक तत्वों को बनाए रखने के लिए सदा अपने जीवन को लगाए रखेंगे |


 


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