फ्यूचर लाइन टाईम्स
फिल्म "काला पत्थर" में एक मजदूर अमिताभ बच्चन कोयले की खान के मालिक का गिरेबान पकड़ कर जब कहता है कि आज फिर चार औरतों ने इस काले पत्थर पर अपनी चूड़ियां तोड़ी हैं, यदि कल फिर ऐसा हुआ तो मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा। दशकों बाद भी यह संवाद शरीर के रोएं खड़े कर देता है।लगभग एक पखवाड़े पहले दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में एक घर में चल रही फैक्ट्री में आग लगी थी। लगभग चार दर्जन लोगों की जान गई थी। बड़ा हो हल्ला था। लगता था कि अब आग कभी नहीं लगेगी।आज फिर आग लगी। दिल्ली के किराड़ी इलाके में कपड़े के एक गोदाम में। इस बार किफायती आग लगी। केवल नौ लोगों की जान गई। हालांकि जान एक जाए या चार दर्जन। सरकार की जान को जहमत कम नहीं होती। उतनी बयानबाजी,उतने जांच के आदेश, उतनी सहानुभूति और उतने ही मगरमच्छ के आंसू। हां मुआवजे की रकम थोड़ी बच गयी।कल से फिर फायर एनओसी पर बहस होगी, दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम एक दूसरे के सामने होंगे, दिल्ली फायर ब्रिगेड कॉलर में मुंह डाल कर अपने कुकर्मों पर मुस्करायेगी। और इस प्रकार एक और अग्निकांड निर्मम सियासत तथा हरामखोर प्रशासन की भेंट चढ़ जायेगा।जो नौ लोग आज बेबसी में शहीद हुए हैं उन्हें कौन याद रखेगा। समाचार चैनलों ने तो शाम तक ही उनको भुला दिया है।
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