फ्यूचर लाइन टाईम्स
और जिम्मेदार कोई नहीं ?
५५ वर्ष की एक महिला कल इसलिए काल के गाल में समा गई क्योंकि उसके फेफड़े खराब हो गये थे।उसका १५ वर्षीय इकलौता बेटा इस विपदा के लिए तैयार नहीं था। उसने जहर खा लिया। अड़ोसी पड़ोसी उसे अस्पताल लेकर गए परंतु बचा नहीं सके और इस प्रकार एक परिवार का अंत हो गया। यह कथा किसी आदिवासी इलाके या विकास के दावों से सुदूर क्षेत्र की नहीं है। मुजफ्फरनगर का चरथावल कस्बा दिल्ली से कोई एक सौ किलोमीटर दूर होगा। मृतका विधवा थी।उसे किसी ने विधवा पेंशन के योग्य नहीं समझा।वह फेफड़ों की गंभीर बीमारी से ग्रस्त थी, उसे किसी ने आयुष्मान भारत योजना का पात्र नहीं माना।वह घरों में काम करके किसी प्रकार खुद का और अपने पुत्र का पेट भर पाती थी। पुत्र नौवीं कक्षा में पढ़ रहा था।कल दोनों की अर्थी एक साथ उठी और प्रशासन और समाज की जिम्मेदारियों का जनाजा भी। अखबारों में खबर है कि कस्बे में शोक व्याप्त है। क्या यह फर्जी शोक नहीं है? क्या कस्बे में एक भी ऐसा इंसान नहीं रहता जिसे दूसरे की भी फिक्र हो? प्रशासन को बहुत काम हैं। प्रशासन की चिंताएं उसे सोने नहीं देती। इसलिए समाज और सरकार से निश्चिंत मां बेटा हमेशा के लिए सो जाते हैं। उनपर शोक प्रकट करने का अहसान करने वाला समाज और मौन साध लेने वाला प्रशासन कल से ही फिर अपने ढर्रे पर चल पड़े हैं। इस ढर्रे में आत्मा की खोज जारी है।
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