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अजान से राष्ट्रगान तक : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 



इस सहमति पर सारी असहमति कुर्बान। अजान कानों में पड़ी नहीं कि पत्थर उठाये हाथ लटक गये। यह दिल्ली का दृश्य था।


पुलिस अधिकारियों ने इस बीच कुछ समझाने की कोशिश की तो उन्हें हाथ के इशारे से चुप रहने को कहा। अजान पूरी हुई और हिंसक प्रदर्शन करने वाले घरों को गये। देश के एक दूसरे हिस्से में भी ऐसा ही हुआ। भीड़ बलवे पर उतारू थी कि राष्ट्रगान बजने लगा। भीड़ खुद-ब-खुद रुक गई।तने हुए हाथ सावधान की मुद्रा में नीचे आ गये। क्या था यह? इस खूबसूरत देश की इस स्वत: प्रेरित भावना का ऐसा प्रदर्शन किसे आह्लादित नहीं करेगा। फिर झगड़ा क्यों है?हम एक जमीन से जन्मे। हमारी संस्कृति सांझी है। हमें कौन अलग कर सकता है।हम क्यों अलग हों। अजान हमें शांत करती है, राष्ट्रगान हमें सावधान करता है। ऐसे ही और भी साझे फर्ज हैं जिनपर किसी का जोर नहीं चलता,न पुजारी का और न मौलवी का।न सरकार का और न विपक्ष का। हमारी साझी विरासत को न नागरिकता संशोधन अधिनियम बांट सकता है और न एन आर सी। खुद से सवाल करें और पत्थर फेंक दें। यह किसी को भी लग सकता है।


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