फ्यूचर लाइन टाईम्स
अब नही आउंगी तेरे आंगन मैं,
माँ मुझे डर लगता है
कब तक पकड़ोगी उंगली मेरी,
और कैसे मुझे बचओगी गर होते रहेंगे ये हादसे,
तो क्या तू मुझे घर से बाहर भी भेज पाएगी, या तो छुपा ले तू मुझे आँचल मैं,
या मुझे आने ही मत दे जमाने मैं,
अब मैं भी थक गई हूं,
मुझे भी तो चैन की सांस लेने दे,
हज़ारो मौतों की जगह,
मुझे एक ही मौत दे देना,
हज़ारों आंखें ना रोये,,
बस तू ही रो लेना,,
बस तू ही रो लेना
कवित्री-रजनी शर्मा नोएडा
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