फ्यूचर लाइन टाईम्स
।।स्थिरं सुखम् आसनम्।।
जिस में स्थिरता पूर्वक, सुख पूर्वक बैठा जा सके। वह आसन कहाता है।
*पतंजलि मुनि ने उपासना के तृतीय पद को बताते हुए यह परिभाषा कही है। आसन उपासना की रीढ़ है। अतः आसन का अभ्यास नित्य करें। जो मनुष्य स्थिरतापूर्वक, सुखपूर्वक बैठने का अभ्यास कर लेता है, वही प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान की अवस्थाओं का अभ्यास कर सकता है, अन्यथा आसन में स्थिरता, सुख ना होने से मन स्थिर नहीं हो सकता। अतः सभी उपासक नित्य आसन में बैठने का अभ्यास करें। सबसे अधिक स्थिरतापूर्वक, सुखपूर्वक पद्मासन में बैठा जा सकता है। पद्म का अर्थ है कमल। अत: इसे कमलासन भी कह सकते हैं। अधिकांश आर्यपूर्वजों के चित्र पद्म कमल पर बैठे हुए उपासना करते हुए बनाए जाते हैं, जिन्हें वर्तमान के लोग देवी-देवता मानते हैं। जो जन पद्मासन लगा पाने में सक्षम नहीं हैं, वे प्रारम्भ में सुखासन, अर्ध-पद्मासन की सिद्धि करें। धीरे -धीरे पद्मासन की सिद्धि कर उपासना अभ्यास करते जायें। उपासक ही देवता होते हैं, आइये आसनसिद्ध कर उपासक बनें।
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