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आर्यसमाजियों के चरित्र बहुत ऊंचे होते थे

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


कुछ काल पूर्व एक आर्य विद्वान् प्रवक्ता हुए। बहुत अच्छे विद्वान् आर्य सज्जन थे। आर्यसमाजी विद्वानों को संस्कृत, हिंदी के अतिरिक्त थोड़ा बहुत और  भाषाओं का भी ज्ञान रखना पड़ता है इसलिए उन सज्जन को उर्दू का भी अच्छा ज्ञान था। आर्यसमाज के कार्यक्रमों में वे सज्जन जाते रहते और अपने ज्ञान से लोगों को वेदोपदेश की वर्षा करते। एक बार एक मौलवी उनसे मिले और कहा कि आप मेरी पत्नी को उर्दू पढ़ा दिया करो, नित्य एक घण्टा। आर्य सज्जन ने पहले तो व्यस्तता के कारण उन्हें मना कर दिया पर जब मौलवी ने अधिक आग्रह किया तो वे मान गये और एक घण्टा प्रतिदिन का समय नियत किया तथा एक महीने में आर्य ने उर्दू सिखाने का समय निर्धारित किया तथा फीस के पांच सौ रुपए मौलवी ने देने तय किये। आर्य सज्जन एक घण्टे के लिए प्रतिदिन मौलवी के घर जाकर उनकी पत्नी को उर्दू पढ़ाने लगे। 
जब आर्य सज्जन पढ़ाना शुरू करते, तब मौलवी छुपकर आर्य सज्जन की और टकटकी लगाकर देखते। जब भी आर्य सज्जन पढ़ाने आते तभी मौलवी छुपकर उनकी और देखते कि कहीं ये आदमी गलत चरित्र का तो नहीं। एक महीना आर्य सज्जन ने पढ़ाकर उनकी पत्नी को उर्दू का ज्ञान कराया। मौलवी ने देखा कि एक महीने में एक दिन भी ऐसा नहीं आया जब आर्य सज्जन की निगाह मौलवी की पत्नी के चेहरे की तरफ गई हो। आर्य सज्जन पढ़ाते समय नीचे निगाहें रखते थे। क्योंकि आर्य जन पराई स्त्री में मातृवत् परदारेषु पराई स्त्री को माता के समान समझने की भावना रखते हैंं । 
जब महीना पढ़ाकर समाप्त किया तो मौलवी ने आर्य सज्जन को १००० रु. फीस के दिये। आर्य सज्जन ने कहा कि फीस तो पांच सौ रुपए निर्धारित हुए थे, लेकिन आप एक हजार रुपए क्यों दे रहे हो? तब मौलवी ने कहा कि मैं पांच सौ रुपए तो आपको फीस के दे रहा हूं और पांच सौ रुपए अपनी तरफ से आपको आपके अच्छे चरित्र के दे रहा हूं।  मौलवी ने आगे कहा कि एक महीना आपने मेरी पत्नी को उर्दू पढ़ाया। एक महीने में एक दिन भी ऐसा नहीं आया, कि आपकी निगाह मेरी पत्नी के चेहरे पर गई हो, सुना था कि आर्य लोग ऊंचे चरित्र के होते हैं, यह बात आज देख भी ली। मैं आपसे बहुत प्रभावित हुआ।


पाठकगण आर्यों के चरित्र इतने पवित्र और ऊंचे होते थे, इसलिए आप लोग भी अपना चरित्र ऊंचा रखो। दूसरों के धन को मिट्टी के समान समझो और पराई स्त्री को माता के समान समझो  मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्  मुसीबत में पड़ी नारी के सतीत्व की अपने प्राण न्यौछावर करके भी रक्षा करो। जब ऐसा आपका आचरण बन जाएगा तो फिर कोई बलात्कारी व्यभिचारी नहीं बनेगा और नारी जाति निड़र होकर रहेंगी। फिर कोई मां-बाप अपनी बेटी को घर से बाहर भेजने में नहीं घबरायेगा।


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