फ्यूचर लाइन टाईम्स
लुटियन ने जिसे अपने बेहतरीन नियोजन से बसाया, दिल्ली बस उतनी भर नहीं है। उसके बाहर चारों ओर फैली हुई दिल्ली में ऐसी अनेक जगह हैं जहां लोग अपने घरों का पानी निकालने के लिए रोजाना नाली खोदते हैं।
कभी दिल्ली देखने की चीज हुआ करती थी।लोग दूरदराज से दिल्ली देखने आते थे। इसका ऐतिहासिक महत्व तो है ही राजनीतिक महत्व भी है। परंतु अब दिल्ली देखने से ज्यादा समझने की चीज हो गई है। केबीसी के मंच पर दिल्ली के संगम विहार इलाके से आए जितेंद्र सिंह चौहान सीए की तैयारी कर रहे हैं। जहां वे रहते हैं वहां पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। लोगों में एक दूसरे के सामने पानी भर जाने पर रोज झगड़ा होता है। पानी निकालने के लिए वहां के निवासी रोज नाली खोदते हैं। दिल्ली अरावली के पहाड़ों पर बसी है। पहाड़ों पर ढलान होने से नाली नहीं बनानी पड़ती है परंतु आबादी के घनत्व ने पानी के निकलने की जगह भी नहीं छोड़ी।दो सरकारों केंद्र व राज्य के बिल्कुल नाक के नीचे पानी निकासी, सड़क और सफाई की अनहोनी रोजाना गुल खिलाती है। फिर भी विकास के दावे पहाड़ चढ़ रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप की जुगलबंदी जनता का मनोरंजन करती है। मुश्किल यह है कि दिल्ली में जो दोनों पक्ष हैं वही दोनों विपक्ष भी हैं। इसलिए राजनीतिक दलों की आंखों का पानी चाहे मर चुका हो परंतु संगम विहार और उस जैसी सैकड़ों कालोनियों का पानी जिंदा है।बस उसे विकास के रास्ते बाहर निकलने का इंतजार है।
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