फ्यूचर लाइन टाईम्स
हम वायु नाम से प्रभु क स्मरण काते हुये उस्की ओर चलें ,सोमकणों की सम्झेंतथा शरीर में उन्हें पैदा करते हुये इनकी रक्षा के समय को समझे । हाम अपन जीवन को सब यग्यों से परिचय वाला बनावेम तथा सदा यज्ञ की विरोधी भावनाओं से अपने आप को बचावे । याह बात इस मन्त्र में इस प्रकार कही गयी है : - वाय उक्थेभिर्जान्ते त्वामच्छा जरितार: ।
सुतसोमा अह्र्विद: ॥ ऋग्वेद १.२.२ ॥ हे गति के द्वारा सब प्रकार की बुराईयों को दूर करने वाले वायु रुप प्रभो !आप वायु के समान गति करने वाले हैं , इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुये विगत मन्त्र में कहा गया था कि सोमकणॊं का शरीर में ही संयम करने वाले , शरीर में ही उपयोग करने वाले , शरीर में ही फ़ैला देने वाले , शरीर में ही व्यापने वाले व्यक्ति स्तोत्रों के द्वारा आपका स्मरण करते हैं, आपका स्तवन करते हैं , आपके पास आते हैं । एक स्थान पर एक ही वस्तु रह सकती है । या तो प्रभु अन्यथा रक्शसी प्रव्रिति । जहां आप का स्तवन होता है, वहां आपके निवास के कारण आसुरी प्रव्रितियां टिक ही नहीं सकतीं । जिस भुमि पर प्रभु स्तुति होती है, वहां रक्शसी प्रव्रिति से युक्त वासनायें कैसे रह सकती हैं ? क्योंकि प्रभु स्तुति से युक्त भूमि में वासनाऒं का उत्पादन हो ही नहीं सकता । यह भूमि वासनाओं के लिये कभी भी उपयुक्त नहीं होती ।
यह आपकी स्तुति करने वाले स्तोता लोग निरन्तर आप की ओर बट्ने का कार्य करते हैं । यह स्तोता लोग भॊतिक पदार्थों की ओर आपना ध्यान, अपनी लगन निरन्तर कम से भी कम करते चले जाते हैं । ज्यों ज्यों इन की आसक्ति भॊतिक पदार्थों के प्रति कम से कमतर होती चली जाती है, त्यों त्यों वह आप के समीप होते चले जाते हैं । भॊतिक आसक्ति ही आप से दूर करने का कारण होती है । जब यह आसक्ति यह लोग अपने में कम करते चले जाते हैं , वैसे ही आप के प्रवेश के लिये द्वार बडा होता चला जाता है । इस प्रकार यह भक्त लोग निरन्तर आपके समीप होते चले जाते हैं ।
आप की समीपता के कारण ही हे प्रभो ! यह भक्त लोग सोम के महत्व को समझ पाते हैं । यह जान पाते हैं कि उनके शरीर में सोम की क्या उपयोगिता है ? यह जानने के ही कारण वह अपने शरीर को बलवान बनाने के लिये, बुद्धिमान बनाने के लिये, ग्यान का भण्डार बनाने के लिये , प्रकाश का केन्द्र बनाने के लिये, अपने शरीर में सोम को बटाने के लिये , सोमकणों का विस्तार करने के लिये, इन सोमकणों को पैदा करने के लिये यत्न करते हैं तथा एसे उपाय कर अपने शरीर में इन सोमकणॊं को सुरक्शित करने वाले बनते हैं । सोमकणों का उत्पादन करने के लिये यह लोग : -
( क )
यह लोग समय के महत्व को समझने वाले बनते हैं । जीवन में किस काल में सोम का उत्पादन हो सकता है , इस तथ्य को यह लोग पह्चान लेते हैं । मानव जीवन में यौवन काल ही एक एसा काल है , जिसमें मानव अधिकतम साधना , अधिकतम मेहनत व अधिकतम संघर्ष कर सकता है । इस यॊवन काल में जो उत्तम प्रकार के सोमकणों की उत्पति हो सकती है , वैसी जीवन की वरिद्धि काल में नहीं हो सकती। बटती आयु में पैदा होने वाले सोम की इतनी अधिक शक्ति नहीं होती, जो यौवन में पैदा होने वाले सोम की होती है । इस तथ्य को समझ कर यह लोग अपने यौवन में ही केवल सोमकणॊं का उत्पादन ही नहीं करते अपितु इस की रक्शा भी करते हैं ।
(ख )
अनेक प्रकार के यज्ञ होते हैं । इन में कुछ यज्ञ एक ही दिन में पूर्ण होने वाले होते हैं । अत: इस मन्त्र में प्रयुक्त शब्द अहर्विद के अनुसार एक दिन में पूर्ण होने वाले यज्ञों का अह: नाम मानकर हम यह भी कह सकते हैं कि जो सुतसोम व्यक्ति होते हैं , वह यज्ञों से अनभिग्य होते हैं, यग्यों को जानते नहीं तथा अपने जीवन को यग्यमय बनाने के लिए सदा यत्नशील रहते हैं , प्रयासरत रहते हैं । इस प्रकार यह वह मार्ग है , जो अयज्ञीय , अपवित्र भावनाओं से बचाये रखने का सर्वोत्तम होता है ।
0 टिप्पणियाँ