फ्यूचर लाइन टाईम्स
उद्धव ठाकरे का सपना और जिद दोनों पूरे हो गए।जैसी मान्यता है कि दिवंगत लोग आसमान से अपने सपनों को सच होते हुए देखते हैं तो क्या बाल ठाकरे आज खुश होंगे? राजनीति में सत्ता हासिल करने के लिए जो उद्धव ने किया शायद बाल ठाकरे कभी नहीं करते। अपने सिद्धांतों और हनक के साथ अंतिम सांस लेने वाले ठाकरे की अंतिम इच्छा यह नहीं थी। हालातों ने शिवसेना को इस हाल तक पहुंचाया तो बाल ठाकरे के सिद्धांत जवाब दे गये। उद्धव के समक्ष अब एक राज्य प्रमुख के तौर पर सिद्ध होने की चुनौती है। इस चुनौती को उन्हें कथित सेकुलर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दम पर पूरा करना है। यह असंभव नहीं है तो भी डेढ़ सौ साल पुरानी कांग्रेस और राकांपा के नित नए दांव-पेंचों से बचना नामुमकिन है। इस गठबंधन की कोई खासियत नहीं है सिवाय इसके कि तीनों पार्टियों को भाजपा का खौफ है। महाराष्ट्र एक समृद्ध राज्य है और मुंबई धनाढ्यों का शहर। कॉरपोरेट हाऊसों से लेकर डॉन के ठिकानों तक यहां सबकुछ है। अगले पांच वर्षों में इन्हीं सब के बीच राजनीति के अनेक रंग देखने को मिल सकते हैं। उद्धव के पास कांग्रेस और एनसीपी के खिलाफ राजनीति करने का डेढ़ दशक का अनुभव है परंतु इनके साथ राजनीति करने का कोई अनुभव नहीं है। यही महाराष्ट्र के लिए बड़ी चुनौती है।
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