फ्यूचर लाइन टाईम्स
सर्दियों में सूरज देवता निकम्मे हो जाते हैं।देर से आना, जल्दी चले जाना।काम में भी मन नहीं लगाते,मंदे,थके-थके और प्रभाहीन।काम से मन चुराने की हद तो तब हो जाती है जब छोटी छोटी बदलियों के पीछे छिपने का प्रयास किया जाता है। बिल्कुल मनुष्य की तरह। जैसे कोई काबिल कर्मचारी अपने सेवायोजक को अपना महत्व जताने के लिए अनमने मन से काम करने लगता है। सर्दियों में सूर्य भी मानव की नकल करने लगते हैं। घर में कभी कभी पत्नी जी भी ऐसे ही नुस्खे आजमाती हैं। सूर्य जगत की ऊर्जा के देवता हैं और पत्नियां घर की। मौसम कोई भी हो उनका महत्व कम नहीं होता। कामचोरी या क्रोध दोनों का ही असहनीय होता है। उन्हें कौन समझाए कि आप हैं तो जग है,आप हैं तो घर है। आपके बिना उजाला कहां, आपके बगैर अंधियारे से मुक्ति कैसे। रात्रि कितनी भयावह हो, सुबह की उम्मीद के सामने उसकी क्या हस्ती।
राजेश बैरागी
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