फ्यूचर लाइन टाईम्स
आज जब महाराष्ट्र को लेकर सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक हाय-तौबा मची है तो कल २६ नवंबर को संविधान दिवस भी है। ठीक ७० वर्ष पूर्व २६ नवंबर १९४९ को देश की संसद ने भारत के संविधान को स्वीकार किया था।१ लाख २६ हजार शब्दों से लबरेज यह विश्व का सबसे विशाल संविधान है। इसमें वह सभी बातें लिखी हैं जिन्हें देश के नागरिकों और सरकार को मानना चाहिए। परंतु क्या संविधान का पालन उसी प्रकार हुआ? डॉ अंबेडकर ने संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में कहा,-संविधान चाहे जितना अच्छा हो परंतु इसका पालन करने वाले बुरे लोग होंगे तो यह बुरा ही सिद्ध होगा।" राज्य की जिम्मेदारियों में शुमार चिकित्सा, शिक्षा, सुरक्षा के लिए अभी हमें कोसों चलना शेष है। सत्ता के नुमाइंदों के निजी हितों ने राज्य की अवधारणा को ही बदल कर रख दिया है। भ्रष्टाचार संस्थागत रूप ले चुका है और इसे आर्थिक विकास के लिए जरूरी बताया जा रहा है। योग्यता के स्थान पर संबंधों और पहुंच का बोलबाला है। अंतिम पायदान पर खड़ा नागरिक वहीं खड़ा है जबकि चतुर, चापलूस लोगों की काया पलट चुकी है। एक दूसरे की निगरानी के लिए नियुक्त कार्यपालिका, विधायिका, न्याय तंत्र और सूचना तंत्र गलबहियां डाले सत्ता की खीर खा रहे हैं।कल संविधान दिवस है और कल महाराष्ट्र दिवस भी हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट कल सुबह महाराष्ट्र पर निर्णय सुनायेगा जो संविधान प्रदत्त राज्यपाल की शक्तियों की समीक्षा होगी। सत्तर वर्षों में इतनी उन्नति तो संतोषजनक है?
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