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समाजसेवा की औपचारिक क्रांति !

फ्यूचर लाइन टाईम्स 
धरती और प्रकृति को बचाने के लिए अति आवश्यक वृक्षारोपण को कॉरपोरेट के चश्मे से देखना दिलचस्प हो सकता है।आज एक विद्यालय में नैगम सामाजिक दायित्व सीएसआर के तहत एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने सैकड़ों पेड़ लगाने का कार्य किया। एक गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित इस वृक्षारोपण कार्यक्रम में कंपनी के अधिकारी व कर्मचारियों ने दस्ताने और एप्रिन पहनकर विद्यालय परिसर में पौधे रोपे।न हाथों को मिट्टी लगी और न कपड़ों पर धूल। धरती-प्रकृति से आत्मीयता विहीन इस कार्य की सुखद संपन्नता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थित लोगों ने एक प्रसिद्ध फूड चेन ब्रांड के आधुनिक खाने का आनंद लिया। खाना, दस्ताने,एप्रिन का कुल खर्च तीस चालीस हजार और पौधों की कीमत तीन चार हजार। बताया गया कि पौधे लगाने के लिए लाए गए कंपनी के कर्मचारी स्वेच्छा से स्वयंसेवा करने नहीं आए थे। उन्हें आज का वेतन मिलेगा, शायद दूसरे कार्यदिवसों से भी ज्यादा। इस कॉरपोरेट वृक्षारोपण का एक पक्ष यह भी रहा कि ताजा लगाए गए अधिकांश पौधों को पानी नहीं दिया गया। यह सब लिखने का उद्देश्य मात्र इतना है कि धरती और प्रकृति से कॉर्पोरेटिक दोस्ती का कोई मतलब नहीं है। धरती और प्रकृति परस्पर अपनत्व का अहसास चाहती है। जैसे उसने प्रत्येक जीव को कुछ भी ले लेने का अधिकार दिया है उसी प्रकार उसे मनुष्य से बगैर दस्ताने पहने नंगे हाथों और यथासंभव नंगे बदन का स्पर्श चाहिए। क्या हम अपने बच्चों, अपनी पत्नी को दस्ताने पहनकर छूना चाहेंगे? धरती तो मां है और प्रकृति सहचरी। उसके और हमारे बीच दस्ताने-एप्रिन का क्या काम। परंतु नैगम सामाजिक दायित्व समाजसेवा का औपचारिक आंदोलन है। इसमें दायित्व का बोध नहीं बोझ होता है जिसे दस्ताने और एप्रिन पहनकर जहां मौका लगे उतारकर पटक दिया जाता है। धरती और प्रकृति इस बोझ को भी मनुष्य की दूसरी गलतियों की तरह चुपचाप सह लेती 


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