फ्यूचर लाइन टाईम्स
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार सड़क हादसों में दोपहिया मोटर वाहन चालक सबसे ज्यादा जान गंवाते हैं। इनकी संख्या ३६.५ प्रतिशत है। इसके विपरीत मात्र २.४ प्रतिशत मोटर विहीन दोपहिया अर्थात साईकिल सवार ही सड़क हादसों में जान गंवाते हैं। यह रिपोर्ट भारत में सड़क हादसे-२०१८ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट बताती है कि सड़क पर पैदल चलना भी कम खतरनाक नहीं है। सड़क पर दुर्घटनाओं में जान गंवाने वाले १५ प्रतिशत लोग पैदल चलने वाले हैं। दिलचस्प यह है कि सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में पुरुषों का हिस्सा ८६ प्रतिशत है जबकि महिलाओं का मात्र १४ प्रतिशत ही है। इसका एक बड़ा कारण महिलाओं की वाहन चलाने में बेहद कम हिस्सेदारी होना भी है। दरअसल यह रिपोर्ट बताती है कि साल दर साल (२०१० से २०१८) सड़क हादसे और उनमें होने वाली मौतों में कमी आई है हालांकि यह कमी बहुत ज्यादा नहीं है और सड़कें अभी भी जानलेवा बनी हुई हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग, स्टेट हाइवे और अन्य सड़कों पर मौतों का सिलसिला जारी है। दुर्घटनाओं के लिए सड़क पर चलने वाले सभी अर्थात वाहन सवार और पैदलयात्री सभी की 'यातायात नासमझी' तो जिम्मेदार है ही परंतु सड़कों की रूपरेखा, उनपर आवश्यक सूचना पटों का अभाव और त्वरित राहत साधनों का न होना भी मौतों की वृद्धि का बड़ा कारण है। देश के कई राजमार्गों पर हालांकि १०० की रफ्तार से चलने की अनुमति दी गई है, इसके बावजूद उनपर होने वाले हादसों की रोकथाम व हादसा होने पर तत्काल राहत के उपाय नाकाफी हैं। सड़क देश की जीवनरेखा भी हैं और जीवन लील लेने वाली रेखा भी हैं। वर्ष में एक बार औपचारिकतावश चलाये जाने वाले यातायात सप्ताह, पखवाड़ा अथवा माह से भी सड़क हादसे अप्रभावित ही रहते हैं।
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