फ्यूचर लाइन टाईम्स
आज़ादी के बाद के दौर में फिर से स्वदेशी की अलख जगाने का काम राजीव भाई ने किया है | स्वदेशी का आग्रह तो हमारी सभ्यता का मूलमंत्र रहा है | इसीलिए हम हजारों सालों तक अपनी सभ्यता को आगे ले जा पाये क्योंकि वह स्वदेशी के भाव पर टिकी हुई थी जैसे जैसे हम विदेशी सभ्यता या विचारों के संपर्क में आये हम हीन बोध से ग्रसित होते गये और हम आसानी से गुलाम बन गयें |
आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई उसमें भी स्वदेशी का विचार ही मूलमंत्र था दयानंद सरस्वती से ले कर बंगाल का आंदोलन और फिर गांधी, तिलक व भगतसिंह तक सभी लोग स्वदेशी शाशन और विचार पर ही आज़ादी चाहते थे, आज़ादी आई भी लेकिन हमने स्वदेशी का रास्ता छोड़ दिया और पिछले 60 -70 वर्षों में हम कहाँ पहुँच गये हैं इस का परिदृश्य हमें राजीव भाई ने दिखाया है | इसी आधार पर वे बार- बार स्वदेशी के आग्रह को अपना मूलमंत्र बताते रहे और हमें स्वदेशी के भाव को अपने जीवन में ग्रहण करने के लिए प्रेरित करते रहे | अब उनके बाद उनका साहित्य और उनके व्याख्यान हमें आज भी प्रेरित करते रहते हैं |
माताजी पिताजी का विशेष आग्रह है कि उनकी स्मृति में उनकी समाधि के रूप में एक स्वदेशी स्तंभ बनाया जाये जो आगे निरंतर स्वदेशी के विचार और भाव जागृत करता रहे |
स्वदेशी का विचार एक सनातन विचार है दुनिया की सभी सभ्यताओं में सब का अपने- अपने ढंग का स्वदेशी का विचार रहा है | पश्चिमी सभ्यता में, चीनी सभ्यता में और एशियाई सभ्यता में स्वदेशी का विचार अपने -अपने ढंग से चलता आया होगा | समय के साथ वह परिमार्जित भी हुआ होगा | पिछली शताब्दी में (19 वी) जापान दुनिया का ऐसा उदहारण हैं | जिसने अपनी परंपरागत और स्वदेशी जन-विज्ञान एवं सभ्यतागत विशेषताओं को पूरी तरह से आधुनिक बनाकर दुनिया में एक विकसित अर्थव्यस्था और राष्ट्र की मिसाल पेश की है | भारत मे भी अंग्रजो के आने से पहले और बहुत कुछ अंग्रेजों के समय मे भी स्वदेशी ज्ञान विज्ञान और तकनीकी के माध्यम से दुनिया मे अपना सिक्का कायम किया था | हमें जो भी कुछ पुरातन स्वर्णिम इतिहास लिखित या मौखिक दिखाई देता है वह सब स्वदेशी या देशज तकनीकी एवं प्रज्ञान परंपरा के आधार पर ही था | कृषि विज्ञान, मौसम विज्ञान, कपडा बनाने की कला, मिट्टी के बर्तन बनाने की कला, सोना, ताँबा, चांदी बनाने की कला, कागज बनाने की कला, लौहा बनाने का विज्ञान, प्राकृतिक रंग बनाने का विज्ञान, गौ विज्ञान और तकनीकी, छपाई कला, आयुर्वेद का चिकित्सा विज्ञान, पत्तों जड़ी बूटियों से चिकित्सा करने का विज्ञान, ग्रहों, नक्षत्र को समझने का गणित, गणित विज्ञान, रसोई और पाक कला का विज्ञान यह सब कुछ स्वदेशी ज्ञान विज्ञान और मेघा पर ही विकसित हुआ है | हजारों सालों मे विकसित हुआ हैं |
पिछले सेकड़ों वर्षो से इन सब विषयों पर शोध न होने के कारण यह सब कुछ हम से छूट गया और हम आधुनिक पश्चात विज्ञान व तकनीकी के पिछ लग्गू हो गयें | मात्र पिछले दो सौ वर्षों में हम अपना सब कुछ भूल गयें और सब कुछ विदेशी ज्ञान विज्ञान के मातहत आ गये | शायद राजीव भाई ने हमें इसी का आभास कराया यही विश्वास हैं | फिर से हमारे अंदर संचारित किया है कि जो भी अपना स्वदेशी ज्ञान विज्ञान और तकनीकी है वह सब कुछ ख़राब नहीं हैं | यदि हम चाहें तो उसके आधार पर बहुत कुछ कर सकते है | लेकिन गंभीरता से और लम्बे समय तक हमें उनपर प्रयोग करने होंगे |
राजीव भाई का पूरा जीवन लोगों मे स्वदेशी की चेतना जागृत करने मे बीता हैं |
1) विदेशी कंपनियों की लूट से सावधानी और स्वदेशी अर्थव्यवस्था की स्थापना,
2) विदेशी दवा कंपनियों की पूत से सावधानी और स्वदेशी चिकित्सा विज्ञान की स्थापना,
3) विदेशी विज, खाद और स्थापन से सावधानी और स्वदेशी कृषि व्यवस्था की स्थापना,
4) विदेशी शिक्षा प्रणाली मे सावधानी और स्वदेशी व्यवस्था की स्थापना,
5) विदेशी कानून और राजावस्था के चंगुल से छुटकारा और भारतीय कानून और राजव्यवस्था की स्थापना,
6) विदेशी सभ्यता व संस्कृति से सावधानी और स्वदेशी सभ्यता संस्कृति की स्थापना
मूल रूप से इन 6 विषयों पर राजीव भाई ने हमें समझाया हैं | हम सबके सामने यह बड़ा प्रश्न है की अब इन विषयों पर आगे किस तरह के कार्य को आगे बढ़ाया जाये | विदेशी कंपनियों के बारे मे किस तरह से हम जन जागृति आगे बढ़ायें, उनके विषयों पर नई सामग्री और शोध का कार्य किस तरह आगे बढे | इसी तरह स्वदेशी कृषि, स्वदेशी शिक्षा स्वदेशी चिकित्सा और स्वदेशी अर्थव्यवस्था के विचार को हम कैसे आगे बढ़ाये |
राजीव भाई की स्मृति मे बन रहा यह 'स्वदेशी स्तंभ' राजीव भाई के विचारोंपर आधारित स्वदेशी भारत बनाने के लिए प्रेरणा देता रहेगा |
इसी के साथ में स्वदेशी तकनीक और ज्ञान विज्ञान का एक संग्रहालय व कला दीर्घा भी होगी जो स्वदेशी के मर्म को विभिन्न स्वरूपों में व्यक्त करेगी | स्वदेशी का मूलार्थ तो वह भाव है जो हमको हमारे आसपास की प्रकृति के सबसे नजदीक का सम्बन्ध विकसित करता है | वह भाव सभी कलारूपों मे भी व्यस्त होता रहता है | हम जो भी रचनात्मक या निर्माण का कार्य करते है वह उन्ही भाव रूपों से निर्मित होता है इसीलिए स्वदेशी एक भाव हैं जिसको निर्मित करना ही पड़ेगा | रचनात्मक रूप से यह स्वदेशी भाव किस तरह निर्मित होगा किस तरह आकर लेगा इसके लिए तकनीक और ज्ञान विज्ञान के साथ साथ कला रूपों का भी प्रदर्शन साथ में होगा |
जिस तरह पुरातन काल में तकनीकी उन्नति के साथ -साथ कलारूपों की भी उन्नति हमें देखने को मिलती है चाहें वह किसी भी तरह की कला हो | आज़ादी के समय जब बंगाल में स्वदेशी आंदोलन चला तो ज्ञान विज्ञान के साथ -साथ विभिन्न कलारूपों में भी वह स्वदेशी आंदोलन चला | राजीव भाई का मानना था कि इसी तरह अब नया स्वदेशी आंदोलन भी चलना चाहिए |लेकिन राजीव भाई के बाद उस कार्य को आगे बढ़ाने की जबाबदारी हम सभी की है | राजीव भाई कि समाधिके रूप में बन रहा 'स्वदेशी स्तंभ' इन्हीं सब कार्यो को प्रेरित करने के लिए है |
इसके निर्माण के लिए हम सब क्या- क्या सकते है | सोंचे और सुझायें | अभी हम इस की नीव या शिलान्यास कर रहे है | आगे इसे जल्दी से जल्दी बनाने की कोशिश करेंगे |
इसका एक मॉडल हमारे ट्रस्टी पाटिल साहब ने तैयार किया है वह आपके सामने है इसमें हम अपने सबके सुझाव भी आमंत्रित करेंगे |
राजीव दीक्षित मेमोरियल स्वदेशी उत्थान संस्था
सेवाग्राम, वर्धा महाराष्ट्र
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