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प्रबोधिनी एकादशी का महत्व : अनिरुद्ध दास

फ्यूचर लाइन टाईम्स   


 दिनांक 8 नवंबर शुक्रवार को कार्तिक  की प्रबोधनी एकादशी है। भगवान  चातुर्मास  तक शयन करके  योगनिद्रा से  उठेंगे । धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप ने बहुत ही उत्तम प्रश्न किया ।एक बार नारद जी ने यही प्रश्न लोक दृष्टा  ब्रह्मा जी से किया था, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की कौन सी एकादशी होती है और उसका महत्व क्या है ?ब्रह्मा जी बोले मुनिश्रेष्ठ प्रबोधनी का महत्व पाप का नाश पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धि वाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करने वाली है ।समुद्र से लेकर सरोवर तक जितने भी तीर्थ हैं वह सभी अपने महत्व की तभी तक गर्जना करते हैं जब तक कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु की प्रबोधिनी तिथि नहीं आ जाती। 
          प्रबोधिनी एकादशी को एक ही उपवास कर लेने से मनुष्य हजार अश्वमेघ तथा सौ राजसूय यज्ञ का फल पा लेता है। पहले के हजारों जन्मों में जो पाप किए गए हैं उन्हें प्रबोधनी की रात्रि का जागरण रुई की ढेरी के समान जलाकर भस्म कर डालता है ।प्रबोधनी एकादशी को जागरण करने से अनायास ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिल जाता है जैसे मनुष्य के लिए मृत्यु अनिवार्य है उसी प्रकार धन-संपत्ति मात्र क्षणभंगुर है ऐसा समझकर एकादशी का व्रत करना चाहिए ।प्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु के उद्देश्य से मानव को स्नान दान जप और होम करना चाहिए वह सब अक्षय होता है। भगवान माधव की भव्य पूर्वक पूजा करनी चाहिए। प्रबोधनी के व्रत करने से भगवान गोविंद जवानी और बुढ़ापे में किए हुए 100 जन्मों के पापों को चाहे वह अधिक हो या कम हो धो डालते है । प्रतिदिन जो शास्त्रीय चर्चा में मनोरंजन करते हुए कार्तिक मास व्यतीत करता है वह अपने संपूर्ण पापों को जला डालता है और 100 यज्ञो का फल प्राप्त करता है । ब्रह्मा जी कहते हैं कार्तिक में  केशव के सामने शास्त्र का स्वाध्याय तथा सेवन करना चाहिए। 
        कार्तिक में कल्याण प्राप्ति के लाभ से श्री हरि की कथा का प्रबंध जो करता है वह अपनी सौ पीढ़ियों को तार देता है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु की जो कथा सुनता है उसे सहस्त्र गोदान का फल मिलता है ।  भगवान विष्णु की कथा सुनकर उपनिषद के अनुसार कथावाचक की जो पूजा तथा उन्हें दान करते हैं उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। कार्तिकी प्रबोधनी एकादशी के दिन बहुत से फल फूल कपूर अरगजा कुमकुम के द्वारा हरि की पूजा करनी चाहिए, कंजूसी नहीं करनी चाहिए ।जागरण के समय शंख में जल लेकर तथा नाना प्रकार के फलों  के साथ श्री जनार्दन का  अर्ध्य देना चाहिए। संपूर्ण तीर्थ में स्नान करने और सब प्रकार से दान देने से जो पुण्य प्राप्त होता है वही प्रबोधिनी एकादशी को अर्ध्य देने से करोड़ों गुना होकर प्राप्त होता है ।
     भगवान कहते हैं केतकी के पत्ते से पूजित होने पर भगवान गरुड़ध्वज 1000 वर्ष तक अत्यंत खुश रहते हैं।कार्तिक में भगवान जनार्दन को तुलसी के पत्र और पुष्प जो अर्पण  करता है उसका जन्म भर का किया हुआ सभी पाप भस्म हो जाता है। ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद जो प्रतिदिन तुलसी पत्र से भगवान की सेवा करता है वह कोटि सहस्त्र युगो  तक पुण्य का भागीदार होता है। कार्तिक मास में तुलसी के 1 पत्ते से जिस फल की प्राप्ति होती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।100 यज्ञो द्वारा देवताओं का यज्ञ करने और अनेक प्रकार के दान देने से जो पुण्य होता है वह कार्तिक में तुलसी दल मात्र से केशव की पूजा करने पर प्राप्त हो जाता है ।इस तरह से भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया ।
      व्याख्या करता दासानुदास ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास, रामानुज आश्रम, संत रामानुज मार्ग ,शिव पुरम प्रतापगढ़।


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